
आनंद अने ज्ञानरूप छे.
नथी, तेनी साची वात अंतरना प्रेमथी सांभळी नथी. आत्मानुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं
सांभळीने तेनो निर्णय करे त्यारे तेना साचा सुखनो अनुभव थाय, ए सिवायनुं बधुं
फोक छे.
जुदी, एकसरखी छे. तेम अनंता जीवो ज्ञानस्वरूप सर्वज्ञस्वभावी छे. तेमां उपर जुदा–
जुदा शरीरनो संयोग छे,–कोईने पुरुषनुं शरीर, कोईने स्त्रीनुं शरीर, कोईने देवनुं
शरीर, कोईने मनुष्यनुं, कोईने ढोरनुं–एम उपरना चामडा जुदा जुदा छे पण आत्मा
कांई स्त्री–पुरुष वगेरे नथी, आत्मा तो ते शरीरथी जुदा एकसरखा ज्ञानस्वरूप छे.
जेवा सिद्ध परमात्मा छे तेवो दरेक आत्मा छे.
आत्मा ज्यारे अनुभवमां आवे छे त्यारे एवो कोई आत्मिक आनंद थाय छे के जे
आनंदनी पासे ईन्द्रपद के चक्रवर्ती पदना वैभवनी पण कांई गणतरी नथी. राग अने
संयोग तो उपाधि छे, ते कांई चैतन्यनी मूळ वस्तु नथी. शुभ–अशुभ राग ते
चैतन्यधर्मथी जुदी चीज छे. आवा चैतन्यस्वरूप आत्माने ओळखवो ते धर्म छे.