Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४९६ आत्मधर्म : ४९ :
* आनंद आत्मानो स्वभाव छे *
(एदलाबादमां पू. कानजीस्वामीनुं प्रवचन: ता. २६–२–७०)
आत्मानुं ज्ञान करीने अनंता जीवो सर्वज्ञ परमात्मा थई गया; तेवो स्वभाव
दरेक आत्मामां छे. राग–द्वेष ए कांई तेनो कायमी स्वभाव नथी, एनो कायमी स्वभाव
आनंद अने ज्ञानरूप छे.
जेम पाणीनो शीतळ स्वभाव छे; पण लीलफूग ते पाणीनो स्वभाव नथी; तेम
आत्मानो शांत चैतन्यस्वभाव छे, पण आकुळता–राग–द्वेष ते तेनो स्वभाव नथी.
आत्मा अनंतवार मोटो राजा–महाराजा, करोडोपति ने अबजोपति थयो, पण
तेने सुख जराय न मळ्‌युं.–केमके सुखस्वरूप एवो पोतानो आत्मा तेणे कदी जाण्यो
नथी, तेनी साची वात अंतरना प्रेमथी सांभळी नथी. आत्मानुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं
सांभळीने तेनो निर्णय करे त्यारे तेना साचा सुखनो अनुभव थाय, ए सिवायनुं बधुं
फोक छे.
जेम सोनानी एकसरखी दश लगडी उपर जुदा–जुदा नाना–मोटा वस्त्र वींटया
होय तेथी कांई अंदरनी लगडी जुदी–जुदी जातनी थई जती नथी, लगडी तो वस्त्रथी
जुदी, एकसरखी छे. तेम अनंता जीवो ज्ञानस्वरूप सर्वज्ञस्वभावी छे. तेमां उपर जुदा–
जुदा शरीरनो संयोग छे,–कोईने पुरुषनुं शरीर, कोईने स्त्रीनुं शरीर, कोईने देवनुं
शरीर, कोईने मनुष्यनुं, कोईने ढोरनुं–एम उपरना चामडा जुदा जुदा छे पण आत्मा
कांई स्त्री–पुरुष वगेरे नथी, आत्मा तो ते शरीरथी जुदा एकसरखा ज्ञानस्वरूप छे.
जेवा सिद्ध परमात्मा छे तेवो दरेक आत्मा छे.
आत्मानो स्वभाव परभावोथी भिन्न छे, ने पोताना ज्ञानानंद स्वभावथी पूरो
छे, तेने कोई आदि के अंत नथी. संकल्प–विकल्पथी रहित एवा शुद्धनयवडे आवो
आत्मा ज्यारे अनुभवमां आवे छे त्यारे एवो कोई आत्मिक आनंद थाय छे के जे
आनंदनी पासे ईन्द्रपद के चक्रवर्ती पदना वैभवनी पण कांई गणतरी नथी. राग अने
संयोग तो उपाधि छे, ते कांई चैतन्यनी मूळ वस्तु नथी. शुभ–अशुभ राग ते
चैतन्यधर्मथी जुदी चीज छे. आवा चैतन्यस्वरूप आत्माने ओळखवो ते धर्म छे.