Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : फागण : २४९६
आत्मानी लगनी...ने अनुभवनी खूमारी
माह वद छठ्ठे आकोला शहेरमां पू. श्री कानजीस्वामी पधारतां
जैनजनताए उमंगभर्युं स्वागत कर्युं; दोढ लाखनी वस्तीवाळा
आ शहेरमां जैनोना पांचसो घर, एटले त्रणेक हजारनी वस्ती
छे. चार दिगंबर जिनमंदिरो छे. स्वागत पछी प्रमिलाताई
होलमां मंगलप्रवचन करतां गुरुदेवे कह्युं के–
लागी लगन हमारी जिनराज लागी लगनी हमारी...
काहूके कहे कबहूं न छूटे लोकलाज सब डारी...
प्रभुजी! लागी लगन हमारी.
जिनराज ते वीतरागस्वभावने पामेला सर्वज्ञ परमात्मा, तेमने ओळखीने
भक्त कहे छे के हे भगवान! आपनी वीतरागताने अने आपना अतीन्द्रिय ज्ञान–
आनंदने अमे ओळख्या, त्यारथी अमने तेनी लगनी लागी छे, ते लगनी हवे कदी
छूटे नहीं ज्ञानानंदस्वभावनी जे श्रद्धा थई ते कदी छूटे नहीं. हे नाथ! आत्मानी जे
खूमारी चडी, जे रंग लाग्यो ते कोई प्रसंगे कदी छूटे नहीं. आत्माना अनुभवनी कोई
अपूर्व खूमारी ज्ञानीने छे, आत्मानी लगनी आडे लोकलाज छोडी दीधी छे तेथी
लोकनी प्रतिकूळता हो तोपण, स्वभावना अनुभवनी खुमारी चडी ते चडी, तेमां हवे
भंग पडे नहीं ने बीजो रंग लागे नहीं. आत्मानी आवी रुचि–श्रद्धा–ओळखाण
करवी ते मंगळ छे.
बपोरे प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं–आत्मा पोते सर्वज्ञपरमेश्वर छे, अचिंत्य
ज्ञानशक्ति तेनामां छे. आचार्यदेव कहे छे के अरे जीवो! अनादिथी निजस्वरूपने
भूलीने जे भ्रमणा करी छे तेने हवे तो छोडो. पर मारां, शरीरादिनां काम हुं करुं एवी
स्व–परनी एकताबुद्धिरूप अज्ञानने हवे तो छोडो. अरे जगतना जीवो! आ
चेतनस्वरूप आत्मा छे ते कदी अचेतन शरीर साथे एकमेक थतो नथी, त्रणेकाळे ते
जडथी जुदो ज छे. जड–चेतननी एकताबुद्धिनो जे भ्रम छे तेने हवे तो छोडो. अहो,
आत्माना रसिक जनोने रुचिकर एवुं ज्ञानस्वरूप छे, ते ज तमारुं स्वरूप छे, तेने
अनुभवमां लईने तेनो स्वाद ल्यो. चैतन्यरस ए ज साचो रस छे, तेना भान वगर
चारे गतिमां जीवे अनंत अवतार कर्या छे. तेनाथी हवे केम छूटाय–तेनी आ वात छे.