Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 48

background image
: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : २१ :
रतलाम शहेरमां बे दिवस
[पू. गुरुदेव रतलाम शहेरमां पहेली ज वार पधार्या; जैन समाजनो उत्साह
पण अनेरो हतो. एक लाखनी वस्तीमां दि. जैनोना १२प घर, अने श्वे. जैनोना कुल
१प०० (दोढ हजार) जेटला घर छे; गुरुदेव फागण वद बीजनी सवारमां रतलाम
पधारतां समस्त जैन समाजे एक थईने उत्साहथी भावभीनुं स्वागत कर्युं. श्वे.
समाजनी बेन्डपार्टी पण स्वागतमां सामेल थई हती. सौथी आगळ धर्मध्वज, पछी
१०८ कुमारिका बहेनो मंगळ कळश सहित हती, युवानो उत्साहथी भजन अने
जयजयकार करता हता. रतलामना जैनसमाजने माटे धन्यवाद अपावे एवी सुंदर
व्यवस्था ने सुंदर स्वागत हतुं. चांदनी चोकमां जिनमंदिर पासे विशाळ मंडप
श्रोताजनोथी भरचक भराई गयो हतो. स्वागतविधि बाद मंगलप्रवचनमां गुरुदेवे
कह्युं के –
भगवान आत्मा आनंदस्वरूप छे; शक्तिमां पूर्ण आनंद छे, तेना आश्रये ते
आनंद प्रगटे छे. जिनेन्द्रदेव परमात्मा कहे छे के आत्मा अतीन्द्रिय आनंदरूप छे.
भगवानने जे अनंत अतीन्द्रिय आनंद प्रगट्यो ते कांई बहारथी नथी आव्यो; अंदर
आत्मामां हतो ते ज प्रगट्यो छे. रागथी पार वीतरागी आनंदथी भरेलो दरेक
आत्मानो स्वभाव छे.
अहो, आत्माना आवा वीतरागस्वभावनो महिमा आजे सांभळ्‌यो, अने ते
स्वभावनी लगनी लागी. धर्मी जीव दुनियानी दरकार अने लोकलाज छोडीने आत्मानी
ज लगनी करे छे. दुनिया तो दुनिया पासे रही, दुनिया पासेथी अमारे कांई लेवुं नथी,
अमने तो अमारा आत्माना आनंदना अनुभवनी लगनी लागी छे; ते लगनी हवे कदी
छूटवानी नथी. आत्मानी लगनी आडे दुनियानुं लक्ष छोडी दीधुं छे.
आत्मानी आवी लगनी लगाडीने तेनी सन्मुख थतां जे आनंदनो स्वाद आवे
तेनुं नाम धर्म छे, अने ते अपूर्व मंगळ छे. पोताना आत्माना स्वभावनी सन्मुख थतां
जे सम्यग्ज्ञान अने अतीन्द्रिय आनंदनी कळा खीले ते धर्म छे.
विभावथी विमुख थईने स्वभावनी सन्मुखता एक क्षण पण जीवे करी नथी.
आत्मा पोते सत् वस्तु छे, ते पासे आनंदथी भरपूर छे. जेम सुगंधी कस्तुरीमृगनी
डूंटीमां ज भरी छे पण बहार ढूंढे छे, कस्तुरीमृगनी जेम आत्मामां आनंदनी कस्तुरी
भरी छे, पण पोतानी निधिने भूलीने ते बहारमां शोधे छे. अंदरना स्वभावने