: ४४ : आत्मधर्म चैत्र : २४९६
घडाक.....घडाक.....घडाक!
एकाएक आकाशमां अवाज थया, फांसीना मांचडाने बदले सिंहासन रचाई
गयुं; देवो पुष्पवृष्टि करवा लाग्या, अने अमरकुमारनुं बहुमान कर्युं. सर्वत्र नमस्कार–
मंत्रनो प्रभाव छवाई गयो. राजाए क्षमा मांगीने जैनधर्मनो स्वीकार कर्यो. कसाई
लोको हिंसा छोडीने जैनधर्मी बन्या. अमरकुमारना पिता अने भाईने पण खूब
पश्चात्ताप थयो, माता खूब प्रसन्न थई. अमरकुमारनी अमरकहानी अने
नमस्कारमंत्रनो प्रभाव देखीने सर्वत्र जयजयकार छवाई रह्यो. अंते असार संसारथी
विरक्त थईने अमरकुमारे पोतानुं आत्महित साध्युं.
जीवनमां कोई प्रसंगे नमस्कारमंत्रने कदी न भूलो.
पंचपरमेष्ठीने ओळखीने हृदयमां सदा तेनुं चिंतन करो.
(अनुसंधान पृष्ठ ४१ थी चालु)
पोतामां सन्मुख थईने पोताना आत्माने अतीन्द्रियप्रत्यक्ष कर्या वगर केवळी
भगवाननी, गुरुसंतनी के सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मानी साची ओळखाण थई शके नहीं.
अहो, वीतरागमार्ग आखो स्वसन्मुखतानो ज मार्ग छे, पराश्रयथी तेनां पत्ता लागे
तेम नथी. आ तो चैतन्यना पाताळनो पत्तो लेवानी वात छे, उपलकद्रष्टिना मापे
चैतन्यना पाताळनो पत्तो न लागे. रागनां पडने चीरीने अतीन्द्रियज्ञाननी
अनुभूतिवडे अंदरना चैतन्यदरियामां ऊतर, तो आत्मानो पत्तो लागशे.
प्रश्न:– ज्ञानी आत्माने केवी रीते ओळखाय?
उत्तर:– ज्ञानस्वरूप आत्मा लक्षमां आवे त्यारे बीजा ज्ञानी आत्मानी खरी
ओळखाण थाय. रागथी जुदो पडीने ज्ञानना लक्षे ज्ञानीनी खरी ओळखाण थाय, केमके
जे शुद्धात्मानी जातने ओळखवी छे तेवी जातरूपे पोते परिणम्या वगर तेनी खरी
ओळखाण थाय नहीं. ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखवा माटे पोतामां ईन्द्रियातीत
ज्ञानरूप परिणमन थाय त्यारे ज आत्मा ओळखाय छे.