Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ४३ :
नानो छोकरो आपी दईए. ते सांभळतां ज स्त्रीनुं मातृहृदय पुत्रवधनी वात सहन
करी शकतुं नथी, ने एम न करवा खूब ज करगरे छे. पण पितानुं पत्थरहृदय
पीगळतुं नथी. एवामां अमरकुमारनो मोटो भाई पण आवीने टापशी पूरे छे के हे
माता! तुं नकामो सोच न कर. अमे आठ–आठ भाईओ छीए, तेमांथी एक देतां
तारुं शुं जवानुं छे, एक पुत्र आपतां पण तारे सात पुत्रो रहेशे ने जींदगीभर
बधानुं दारिद्र पण टळशे. आम पितापुत्र क्रूरचित्ते अमरकुमारने बलिदान माटे
आपी देवानुं नक्की करे छे. तेनी माताअत्यंत आघातथी बेहोश बनी जाय छे.
त्यारे, जेना हृदयमां पंचपरमेष्ठीनो नमस्कारमंत्र द्रढपणे कोतराई गयेलो छे
एवो ए निर्दोष बाळक अमरकुमार त्यां आवी पहोंचे छे, अत्यंत धीर–शांत अने
वैराग्यभावथी माताने आश्वासन आपे छे के हे माता! तुं शोक छोड! पंचपरमेष्ठी
मारा हृदयमां बिराजे छे पछी भय केवो? हे माता! रक्षक एवो राजा पोते ज्यारे
भक्षक थवा तैयार थयो छे, अने जन्मदाता एवो पिता पोते ज्यारे सोनाना टुकडा
खातर मने वेंचवा तैयार थयो छे, त्यारे तुं शोच केम करे छे? आ संसार एवो ज
छे, तेमां जीवने पंचपरमेष्ठी सिवाय बीजुं कोई शरण नथी. मारा देहना बलिदानथी
बधा सुधी थता होय तो भले थाय. हुं राजा पासे जाउं छुं, पंचपरमेष्ठीनो मंत्र मारी
पासे छे, ने हे माता! तुं पण ए ज मंत्रने हृदयमां राखजे.–आम कहीने बाळक
निःशंकपणे जाय छे.
(४) राजानी आज्ञाअनुसार बाळक अमरकुमारने वधस्तंभ उपर लई
जवाय छे. बे चांडाळ ऊघाडो छरो लईने वध माटे तैयार थाय छे,–पण अत्यंत शांत
निर्दोष बाळकने देखीने तेमनुं हृदय पीगळी जाय छे, आंखो भीनी थाय छे, ने हाथ
ध्रूजे छे. त्यारे बाळक तेने कहे छे के भाईओ! मारा पिताए पैसा खातर मने
वेंच्यो, एणे दया न करी, राजा के जे प्रजानो रक्षक कहेवाय छे तेणे पण मारो वध
करवानी ज्यारे आज्ञा करी, तो हवे तमे शुं विचार करो छो? तमे तमारी फरज
बजावो! पण जरावार ऊभा रहो...मारा गुरुए आपेलो ईष्टमंत्र (पंचनमस्कार
मंत्र) हुं याद करी लउं...पछी तमे...
एम कही बाळक वधस्तंभ उपर पहोंची जाय छे; गरदन झुकावी बलिदान
माटे तैयार थाय छे...ने अतीव शांतभावथी पंचपरमेष्ठीनुं स्मरण करे छे,–निःस्तब्ध
वातावरण छवाई रह्युं छे,–मात्र नमस्कारमंत्रना मधुर नाद संभळाय छे–