Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 44 of 48

background image
: ४२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९६
अमरकुमारनी अमर कहानी
(नमस्कारमंत्रनो प्रभाव)
पंचपरमेष्ठी भगवंतोने जेमां नमस्कार करवामां आव्या छे एवो
पंचनमस्कार मंत्र ते
जैनोनो सर्वमान्य महामंत्र छे. जीवन–मरणना कोई
प्रसंगे जैन–बच्चो ए मंत्रने भूलतो नथी. पू. कानजीस्वामी शिरपुर
(अंतरीक्ष–पार्श्वनाथ) पधारेला त्यारे पंचकल्याणक महोत्सव वखते
कारंजाना नानकडा बाळकोए एक अति भाववाही अभिनय वडे नमस्कार
मंत्रनो प्रभाव रजु कर्यो हतो, ए नाटिकानुं नामहतुं ‘अमरकुमारनी
अमर कहाणी.’ पंदर हजार प्रेक्षको ए द्रश्य देखीने प्रभावित थया हता. ते
कहाणीनो टूंक सार अहीं रजु करीए छीए. (ब्र. ह. जैन)

(१) जंगलमां एक जैनगुरु बेठा छे, पंचपरमेष्ठीना ध्यानमां अने
आत्मचिंतनमां ते मग्न छे. एकदम शांत वातावरण छे. एवामां अमरकुमार नामनो छ
वर्षनो गरीब पण संस्कारी बाळक ते जंगलमां आवे छे, जैनगुरुने देखीने राजी थाय
छे, वंदन करे छे. गुरु ध्यानमांथी बहार आवीने आशीर्वादपूर्वक तेने नमोक्कारमंत्र
आपे छे. अमरकुमार अत्यंत श्रद्धा अने आदरपूर्वक ते मंत्रने ग्रहण करे छे, ने
भक्तिपूर्वक रोज तेनुं रटण करे छे.–ए वातने केटलोक वखत वीती गयो.
(२) ते नगरीनो राजा एक कोट बंधावे छे पण तेनुं बांधकाम कोई कारणसर
आगळ चालतुं नथी, वारंवार तूटी जाय छे. त्यारे कोई अज्ञानी–कुगुरु राजाने सलाह
आपे छे के, जो कोई बाळकनुं बलिदान देवामां आवे तो गढनुं काम पार पडे. मूर्ख राजा
ते ऊंधी सलाह स्वीकारीने बलिदान माटे बाळकने शोधे छे.
राजानी आज्ञाथी नगरीमां ढंढेरो पीटाय छे के–जे कोई माणस आ काम माटे
बलिदान चढाववा पोतानो पुत्र आपशे तेनुं राज्य तरफथी सन्मान थशे अने पुत्रना
भारोभार सुवर्ण मुद्रा ईनाम अपाशे.
(३) अमरकुमारना पिता खूब दरिद्र हता, तेमने आठ पुत्रो हता, सौथी नानो
अमरकुमार. कुटुंबनुं भरणपोषण मुश्केलीथी थतुं. अमरकुमारना पिता उपरनो ढंढेरो
सांभळे छे, ने लोभवश मूढ थईने विचारे छे के अमरकुमार राजाने सोंपी दउं तो मारुं
दारिद्र मटी जाय. ब्राह्मण घेर आवीने तेनी स्त्रीने आ वात करे छे, के आपणो