Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९६ आत्मधर्म : ४१ :
अतीन्द्रिय ज्ञानस्वरूप आत्मा छे तेने ईन्द्रियज्ञानवडे जाणी शकातो नथी.
आत्मा एवो स्थूळ नथी के ईन्द्रियज्ञानमां ते जणाय. ईन्द्रियो ते आत्मानी जात नथी
एटले तेना तरफना वलणथी आत्मा जणाय नहीं. ईन्द्रियज्ञान वडे जे कांई जाणवामां
आवे ते आत्मानुं खरूं स्वरूप नथी. ज्ञानस्वरूप आत्मा छे, ते ज्ञानस्वभाव तरफ सीधी
ढळेली ज्ञानपर्याय वडे ज आत्मा जणाय छे, ते ज्ञान आत्मानी जातनुं छे.
कोई कहे के आत्माने जाणी शकाय ज नहीं.
तो कहे छे के–एम नथी. आत्माने जाणी शकाय छे.–विकल्प वडे के ईन्द्रियाश्रित
ज्ञानवडे आत्मा भले न जणाय, पण अतीन्द्रिय ज्ञानवडे तेने प्रत्यक्ष जाणी शकाय छे.
जुओ, आत्मानो अनुभव करवाना आ मंत्रो छे. अतीन्द्रिय ज्ञानवडे आत्माने जाण्या
वगर बीजा कोई उपाये धर्म थाय नहीं.
अतीन्द्रियज्ञान कहो के निश्चयालंबी ज्ञान कहो, ईन्द्रियज्ञान कहो के व्यवहार–
अवलंबी ज्ञान कहो, निश्चयस्वभावने अवलंबनारुं जे अतीन्द्रियज्ञान तेना वडे जणाय
एवो भगवान आत्मा छे. आत्मा एवो तूच्छ नथी के ईन्द्रियज्ञानमां आवी जाय.
जेम मोटा राजाने भीखारी कहेवो के तेनी ओछी किंमत आंकवी ते तेनुं अपमान
अने अनादर छे, मोटो गुन्हो छे. तेम अतीन्द्रियज्ञानस्वभावी अनंतगुणसंपन्न
भगवान आत्मा मोटो चैतन्यमहाराजा छे, तेने राग जेटलो के ईन्द्रियज्ञानना विषय
जेटलो मानवो ते तेनो अनादर छे, मोटो गुन्हो छे एटले के मिथ्यात्व छे. विकल्पातीत
अतीन्द्रिय ज्ञानवडे तेनी सामे जोईने बोलावो तो ज जवाब आपे एवो मोटो
चैतन्यभगवान छे. आत्मसन्मुख थयेलुं ते ज खरुं ज्ञान छे, ते ज आनंदमय छे. ईन्द्रिय
तरफना झुकावमां तो दुःख छे.
आत्मा, ज्यां ईन्द्रियज्ञानथी पण जणाय एवो नथी त्यां जड वाणीथी के ते
तरफना विकल्पथी तो आत्मा केम जणाय? ए तो स्वसंवेदनरूप प्रत्यक्ष ज्ञानथी ज
* * *
ईन्द्रियगम्य चिह्नो वडे अनुमान करीने आत्मानुं स्वरूप जाणी शकातुं नथी.
आत्माने जाणवा माटे अज्ञानी जेटला ईन्द्रियगम्य साधनो माने छे ते बधाय साधन
खोटा छे. ते साधनो वडे जे जणाय छे तेवो आत्मा छे ज नहीं. अतीन्द्रियज्ञानस्वरूप
परिणमेलो जे आत्मा तेने ओळखवा माटे सामा जीवमां पण ते जातनुं अतीन्द्रियज्ञान
जोईए. धर्मनां माप ईन्द्रियोथी पार छे. (अनुसंधान पृ. ४४ नीचे)