: ८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
रात्रे पंचकल्याणकना प्रारंभरूपे ईन्द्रसभा, अयोध्यानो राजदरबार वगेरेना
द्रश्यो थया हता. भगवानना अवतारनी तैयारी जाणीने ईन्द्रो आनंद उत्साह मनावे
छे, दिग्कुमारी देवीओ आवीने मातानी सेवा अने धर्मचर्चा करे छे. माताजी मरुदेवी १६
सर्वश्रेष्ठ मंगळस्वप्नो देखे छे. तेना फळरूपे प्रथम तीर्थंकरनुं गर्भावतरण जाणीने सर्वत्र
आनंद छवाई जाय छे, वगेरे द्रश्यो थया हता. पंडितजीए एक खुलासो कर्यो : शुं
भगवान गर्भमां आवे छे?–नहि; भगवान थयेलो जीव गर्भमां नथी आवतो, पण
गर्भमां आवेलो आराधक जीव आगळ वधीने ते भवमां भगवान थाय छे. भगवान
थया पछी फरीने तेने अवतार रहेतो नथी.
मरुदेवी माताने अध्यात्मचर्चानो प्रेम हतो, तेथी देवीओने आज्ञा करी के आ
आनंदप्रसंगे कांईक धर्मचर्चा संभळावो, ते अनुसार देवीओ परस्पर धर्मचर्चा करवा लागी–
(१) सखी, कहीए, मोक्षका उपाय कया है?
निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र मोक्षका उपाय है.
(२) देवी! ईस भरतक्षेत्रमें मोक्षका मार्ग कौन खोलेंगे?
भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर होकर मोक्षका मार्ग खोलेंगे.
(३) देवी, यह बताईये कि आत्मा कया कर सकता है?
आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानात् अन्यत् करोति किम्।
परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम्।।
(४) आ आत्माने माटे ध्रुव अने शरणरूप कोण छे?
सांभळो–
लक्ष्मी शरीर सुखदुःख अथवा शत्रु मित्र जनो अरे,
जीवने नथी कंई ध्रुव, ध्रुव उपयोग–आत्मक जीव छे.
(५) अपने हितके लिये कैसा विचार करना चाहिए?
सुनिए, ज्ञानी कहते हैं कि–
शुद्ध, बुद्ध, चैतन्यघन, स्वयंज्योति सुखधाम;
बीजुं कहीए केटलुुं? कर विचार तो पाम.
(अनुसंधान पृ. ३४ उपर)