हरगोविंददासना सुहस्ते जैन झंडारोपण थयुं; तथा भाई श्री हीरालाल चुनीलाल
भायाणीए श्री जिनेन्द्रभगवानने वेदीमंडपमां बिराजमान कर्या. पंचपरमेष्ठी
भगवंतोनुं मंगल पूजन प्रारंभ थयुं. ईन्द्रो द्वारा मृत्तिकानयन तथा अंकुरारोपण विधि
पण थई.–आनंदउल्लासभरेला वातावरण वच्चे जिनेन्द्र भगवानना पंचकल्याणकनो
महोत्सव शरू थयो.
अवशेषो आजे पण नजरे पडे छे, बे हजार वर्षथी प्राचीन वीतराग जिनबिंबो त्यां
बिराजे छे; बीजी बाजु नजीकमांज सिद्धक्षेत्र शत्रुंजय; अने त्रीजी बाजु सोनगढ जेवुं
अध्यात्मधाम–आवा भावनगर शहेरमां जैन समाजनी संख्या वीस हजार जेटली छे,
ने श्वेतांबर–दिगंबर बंने समाज वच्चे परस्पर प्रेमभर्युं वातावरण छे. अहींना मुमुक्षु
मंडळने एक भव्य दिगंबर जिनमंदिर बंधाववानी घणा वखतथी भावना हती; ते
अनुसार गांधीस्मृति पासे माणेकवाडीना चोकमां बे लाख रूा. ना खर्चे विशाळ रमणीय
जिनमंदिर तैयार थयुं, अने तेमां जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानो भव्य पंचकल्याणक
महोत्सव थयो. आखी नगरीमां आनंदमय वातावरण छवाई गयुं.
स्थापनानुं सौभाग्य खैरागढवाळा शेठश्री खेमराजजी हंसराजजी तथा सौ. धूलिबहेनने
मळ्युं हतुं. १६ ईन्द्र–ईन्द्राणीनी तथा कुबेरनी स्थापना थई हती. तेमां सौधर्मेन्द्रनी
स्थापनानुं भाग्य शशीकान्तभाईने मळ्युं हतुं. प्रवचन बाद ईन्द्रोनुं सरघस
ठाठमाठपूर्वक नगरीमां फरीने जिनेन्द्रपूजन माटे आव्युं हतुं. बपोरे ईन्द्रो द्वारा
यागमंडल पूजन थयुं हतुं, आ महानपूजनमां पंचपरमेष्ठी, त्रण चोवीसीना तीर्थंकरो,
वीस विहरमान तीर्थंकरो, ३६ गुणयुक्त आचार्य, रप गुणयुक्त उपाध्याय, र८
मूळगुणयुक्त साधु, केवळज्ञानादि ४८ ऋद्धिसंपन्न मुनिवरो; जिनवाणी, जिनालय,
जिनबिंब, जिनधर्म –ते सर्वेनुं पूजन करवामां आवे छे.