Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : वैशाख : र४९६
भावनगरमां –
भगवानी प्रतिष्ठानो भव्य महोत्सव
(चैत्र वद ११ ता. १–प–७०) अनेक प्रकारनी प्रवृत्तिओथी धमधमी रहेलुं
भावनगर शहेर आजे तो अवनवी धार्मिकप्रवृत्तिथी धमधमी रह्युं छे. गांधीस्मृति
पासेना ए. वी. स्कुल मेदानमां आदिनाथ नगरथी मांडीने स्टेशन सुधी हर्षभेर
भक्तजनोनां टोळां चाल्या जाय छे. भावनगरना आंगणे श्री जिनेन्द्र भगवाननी
प्रतिष्ठानो पंचकल्याणक महोत्सव उजववा पू. श्री कहानगुरु पधारी रह्या छे. तेमना
भव्य स्वागतनी तैयारी चाली रही छे.
कानातळावमां जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठा कर्या पछी लाठी थईने अने
सोनगढमां सीमंधर भगवाननां दर्शन करीने पू. गुरुदेव भावनगर आवी पहोंच्या;
अने उल्लासभर्युं भव्य स्वागत थयुं. स्वागतमां मोखरे रत्नत्रयनो झंडो फरकावता
त्रण हाथी हता; अने मंगल कळश सहित ८१ कुमारिकाओ वगेरेथी शोभतुं स्वागत–
सरघस देखीने नगरजनो आश्चर्य अनुभवता हता.
स्वागत–सरघस आदिनाथनगरमां (प्रतिष्ठा–मंडपमां) आवी पहोंच्युं, प्रतिष्ठा
मंडपनी शोभा अनेरी हती. मंगल स्वागतगीत बाद हजारो श्रोताजनोनी सभा वच्चे
मंगल–प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के–आ मांगळिक थाय छे. आनंदस्वरूप भगवान आत्मा
छे तेने स्पर्शीने जे अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय ते मंगळ छे. आत्मा परिपूर्ण
ज्ञान–आनंद स्वभावी छे, सर्व जीवो ज्ञानमय सिद्धसमान छे; कोई जीव अधूरो नथी के
बीजो तेने आपे. आवो आत्मा तेनुं भान करतां जे सम्यक् बीज ऊगी ते वधीने
केवळज्ञान अने परमात्मदशारूपी पूर्णिमा थशे. ते महान मंगळ छे. आ आत्माने
परमेश्वर केम बनाववो तेनी आ वात छे.
धर्मात्मा जाणे छे के हुं मारा चैतन्यरसथी सदाय भरेलो छुं. हुं एक छुं, मारा
स्वरूपमां मोह नथी; शुद्धचेतनानो समुद्र ज हुं छुं, आवा चैतन्यसमुद्रमां डुबकी मारतां
आनंदनुं वेदन थाय ने मोह टळे ते अपूर्व मंगळ छे.
मंगळ प्रवचन बाद तरत ज आदिनाथनगरमां पंचकल्याणक महोत्सव संबंधी