: १४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
जुओ, आमां शुं न्याय छे? आत्मानुं स्वरूप समज्या विना हुं अनंत दुःख
पाम्यो एम कह्युं; पण पुण्य न कर्या माटे दुःख पाम्यो एम न कह्युं. आत्माने समज्या
वगर पुण्य पण अनंतवार करी चूक््यो अने छतां एकलुं दुःख ज पाम्यो, पुण्य करवा
छतां तेनाथी लेश पण सुख न पाम्यो एटले पुण्यनो शुभराग ए कांई धर्म नथी, धर्म
चीज जुदी छे.
अनंतवार नरकमां ने स्वर्गमां गयो; पण आत्माना ज्ञान वगर अनंत दुःख
पाम्यो. स्वर्गमां क््यारे जाय? के पुण्य करे त्यारे. पुण्य करवा छतां, स्वरूप समज्या
वगर दुःख ज (एकलुं दुःख) पाम्यो. माटे शुभराग पण दुःख ज छे. भगवान आत्मा
कर्मथी ने रागथी जुदी चीज छे; आनंदमूर्ति आत्माना भान वगर बहारमां जिनेन्द्र
देवनां दर्शन–भक्ति तथा व्रतादिना राग अनंतवार कर्या.–पण तेनुं फळ शुं? के दुःख ते
केम मटे? के आत्मानुं स्वरूप समजे तो. ए सिवाय शुभाशुभभाव वडे आत्मा रीझे
नहीं, ने तेनुं दुःख मटे नहीं.
रावणना अनेक प्रयत्न करवा छतां सती सीता देवी रीझती नथी; त्यारे कोई
कहे छे के तुं रामनुं रूप धारण कर तो सीता रीझशे. पण रावण ज्यां रामनुं रूप धारण
करे छे त्यां विकारनी वासना रहेती नथी. तेम चैतन्यराम एवो आ आत्मा, तेनी शुद्ध
परिणतिरूपी सीता, ते रागवृत्तिरूपी रावणवडे रीझे तेम नथी. रागना सेवन वडे शुद्ध–
परिणति कदी प्रगटे नहीं. अने अंतरमां चैतन्य स्वभाव तरफ वळीने ज्यां आत्मरामनुं
साचुं रूप धारण कर्युं त्यां शुद्धपरिणतिरूपी सीता रीझे छे ने त्यां विकारीवृत्तिओ रहेती
नथी. आत्मानी जे अनुभूति ते धर्म छे, तेने ज जिनशासन कहेवाय छे. जिज्ञासु शिष्य
पूछे छे के मने आवा आत्मानो अनुभव केम थाय? चार गतिथी थाकेला ने आत्माना
सुखनी झंखना वाळो शिष्य तेनी रीते पूछे छे. ऊंडेथी तेने लक्षमां आव्युं छे के
आत्माना अनुभव वगर अत्यार सुधी जे कांई में कर्युं तेमां पण किंचित सुख मळ्युं
नहीं; तो सुखनो मार्ग अंतरमां कंईक बीजो ज छे.
जेम रावण वडे सीता रीझे नहीं तेम शुभाशुभ बंध भाव वडे मोक्ष कदी सधाय
नहीं.
बंधनना कारण वडे आत्मा केम सधाय? बंधभाव वडे मोक्षनुं साधन केम
थाय? शुभ ने अशुभ तो अनंत वार कर्या.–
वीत्यो काळ अनंत ते कर्म शुभाशुभमांय.
तेह शुभाशुभ छेदतां उपजे मोक्षस्वभाव.