
मोक्षमार्ग वीतरागभावरूप छे, अने शुद्धआत्मानी अनुभूतिथी ज ते प्रगटे छे. आवा
अनुभवमां जैनशासन समाय छे. लोकोने अनुभवना महिमानी खबर नथी. एने तो
रागना स्थूळ परिणामनो ज परिचय छे.
जुदी, अंतरनी सूक्ष्म द्रष्टि जोईए. आत्माए अनादिथी संकल्प–विकल्परूप
विकारभावोने ज भोगव्या छे; पण एनाथी पार वस्तु अंतरमां शुं छे? ते लक्षमां लीधुं
नथी. अहीं आचार्यदेव तेनुं स्वरूप समजावे छे.
पाणीथी स्पर्शावापणुं देखाय छे, पण जो तेने तेना अलिप्त स्वभावथी जुओ तो तेमां
पाणीनो स्पर्श नथी. तेम आत्माने कर्म तरफनी अशुद्ध अवस्थाथी जुओ तो तेमां
कर्मबंधन अने अशुद्धता देखाय छे, पण जो तेना ज्ञायकस्वभावनी सन्मुख थईने जुओ
(एटले के अनुभव करो) तो आत्मा एकरूप शुद्ध ज्ञायकभाव छे तेमां कर्मनो संबंध के
अशुद्धता नथी. आवा आत्मानी अनुभूति ते सम्यग्दर्शन छे. ध्रुवस्वभावने देखतां
शांतदशा प्रगटे ते धर्म छे. आवी धर्मनी वात सांभळवा माटे उपरथी स्वर्गना ईन्द्रो
पण तीर्थंकरप्रभुना समवसरणमां आवे छे ने अत्यंत आदरथी प्रभुनी वाणीमां
शुद्धात्मानी वात सांभळे छे.
बहारना संयोगनी शी वात! आवा ईन्द्र पण आत्माना स्वभावनी वार्ता सांभळवा
माटे देवलोकमांथी अहीं मनुष्यलोकमां तीर्थंकर भगवाननी धर्मसभामां आवे छे.–शुं ते
साधारण पुण्यनी ने दया–दान–पूजानी वात सांभळवा माटे आवता हशे! ए वात तो
साधारण लोको पण जाणे छे, पण एनाथी पार चैतन्यनी कोई अपूर्व वात सांभळवा
ईन्द्रो पण आवे छे. आ मनुष्यपणामां आत्मानुं स्वरूप समजी लेवा जेवुं छे. श्रीमद्
राजचंद्र १६ वर्षनी उंमरे कहे छे के –