Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : २१ :
आवी अनुभूति करतां वीतरागभाव थाय ते धर्म छे; अने जिनशासनमां देव–गुरुए
आवी अनुभूति करवानो उपदेश आप्यो छे.
[वांकानेरमां चैत्र सुद १३ ना सवारना प्रवचन पछी जन्मजयंतिना
हर्षोपलक्षमां महावीर भगवाननी रथयात्रा नीकळी हती. रथयात्रा आनंदपूर्वक
नगरीमां फरी हती; बराबर ए ज वखते श्वेतांबर भाईओनी पण रथयात्रा नीकळी
हती. मात्र पचास पगलाना अंतरे बंने रथयात्रा एकसाथे नगरीमां फरी हती, ने
सर्वत्र महावीरप्रभुना जयकार गाजता हता. अहीं मुमुक्षु भाई–बहेनो ‘ज्ञानधामनी
मुलाकाते पण गया हता. वांकानेर ए पू. बेनश्री चंपाबेनना आत्मज्ञाननुं धाम छे.
चैत्र सुद १४ नी सवारमां जिनमंदिरमां वीरनाथनी भक्ति गवडावीने गुरुदेवे
वांकानेरथी लाठी शहेर तरफ प्रस्थान कर्युं.)
* * * * *
एक युवान भाई!
गुजरातमां प्रवास वखते एक युवान भाई मळ्‌या...संप्रदायथी जैन
हता. वातचीतमां पूछयुं–कदी सौराष्ट्रमां आव्या छो? तो कहे...हा, दर वर्षे
चैत्र सुद पूनमे आवुं छुं. शुं काम? के त्यां शत्रुंजयनी पासे भूरखीया हनुमान
छे त्यां दर्शन करवा दर वर्षे आवुं छुं मने एनी श्रद्धा छे! अरे मूरख भाई!
अरिहंत भगवान जेवा परम देव तारा ज गाममां जिनमंदिरमां बिराजे छे,–
तेमनी श्रद्धाथी तने संतोष नथी? अने तारे भूरखीया हनुमानने पूजवा जवुं
पडे छे? वळी त्यां बाजुमां शत्रुंजय जेवुं सुप्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र होवा छतां तेना
दर्शननी भावना केम नथी जागती? शुं एक जैनयुवानने आ शोभे छे?
जैनना बच्चे–बच्चाना हृदयमां एम होवुं जोईए के –
अरिहंत मारा देव छे, साचा ए वीतराग छे;
जगतने ए जाणे छे, मुक्तिमार्ग बतावे छे.
आवा अरिहंतदेव सिवाय बीजा देवने जैन कदी अंतरमां लावे नहीं.
आवा जैनत्वना संस्कार माटे घर–घरमां प्रचार करवा योग्य पुस्तक “जैन
बाळपोथी” (बीजो भाग) छे. तेनी एक लाख प्रतना झडपी फेलावा माटे
आप सहकार आपो.