
अमरेलीमां थयुं न हतुं तेथी केटलाकने मनमां दुःख हतुं पण आजे हवे ते काम शरू
थाय छे ते आनंदनी वात छे. ज्यारे ज्यारे हुं मुंबईथी देशमां आवुं छुं त्यारे त्यारे
पूज्य महाराजश्रीना दर्शननो लाभ लउं छुं; ने मारे घेरथी (श्री हेमकुंवरबेन)
सोनगढ कायम मकान लईने दरवर्षे चार छ मास त्यां रहीने सत्संगनो लाभ ल्ये
छे, तेथी अमारा परिवारने पण अवारनवार त्यां आववानो लाभ मळे छे.
अमरेलीमां घणा वखतथी जिनमंदिर करवानी केटलाकने ऊंडी भावना हती ते
गुरुदेव प्रतापे आजे पूरी थाय छे, तेमां खास करीने डो. प्रविणभाईए उदारता
पूर्वक तेमनुं मकान (वीसहजारनी किंमतनुं) आपीने आ काम सरळ बनावी दीधुं.
आवा कार्यमां पैसानो तूटो पडतो नथी. हुं राजकोट गुरुदेवना दर्शने आव्यो ने
शिलान्यास माटे वात थई, में होंशथी स्वीकार कर्यो. आजे आ मंदिरनुं शिलान्यास
थतां मने, मारा कुटुंबने तथा अमरेलीना सर्वे मुमुक्षुओने आनंद थाय छे. तथा
आ प्रसंगनी खुशालीमां अमारा तरफथी रूा. प००१/– (अगाउ जाहेर करेला
पचीस हजार उपरांत) अर्पण करवामां आवे छे.
पुण्य–पाप के बहारनी कीर्ति वगेरे हुं नथी, हुं तो स्फटिक जेवो निर्मळ शुद्ध
चैतन्यमूर्ति छुं.– आ प्रमाणे ज्ञानानंद स्वरूप आत्माना श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक जे निर्मळ
भाव प्रगटे ते मंगळ छे. जीव अज्ञानथी चार गतिमां दुःखी छे; आत्माने
ओळखीने तेना शरणे जतां दुःख टळे ने सुख मळे ते अपूर्व मंगळ छे. तेना
निमित्तरूप जिनेन्द्रभगवाननी प्रतिष्ठा छे. भगवान जेवो पोतानो आत्मा छे तेने
ओळखीने श्रद्धामां–ज्ञानमां स्थापवो ते भगवाननी परमार्थ प्रतिष्ठा छे, ने ते
महान मंगळ छे.
ते) जोवा गया हता.