Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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जेवो संसारनो प्रेम छे तेवो आत्मानो प्रेम
प्रगट कर, तो भवनो अंत आवे
*
[वांकानेरथी पू. गुरुदेव चैत्रसुद १४ तथा १पना रोज बे
दिवस लाठी शहेर पधार्या हता. लाठीनुं राजकुटुंब पहेलेथी गुरुदेव
प्रत्ये आदर धरावे छे. लाठीना दरबारश्री करुणरसना राजकवि
कलापिना प्रपौत्र गुरुदेवना प्रवचनमां आव्या हता. गुरुदेवे लाठी
मुमुक्षु मंडळने स्वाध्याय वगेरेमां रस लेवा माटे प्रेरणा आपी
देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्मा केवो छे तेनी आ वात छे. आस्रव एटले के
पुण्य–पापमां एकत्वबुद्धिरूप अज्ञानभाव ते जीवने दुःखदायक छे; प्रभो! ते आस्रवनी
प्रवृत्तिथी आत्मा केम छूटे? एटले आत्मानुं दुःख केम छूटे? एम शिष्य जिज्ञासाथी पूछे
छे. तेने आचार्यदेव आ समयसारमां आस्रवोथी छूटवानी रीत बतावे छे. आस्रव अने
आत्मा भिन्न छे, एटले के क्रोध अने ज्ञान भिन्न छे–एवा भेदज्ञानवडे बंनेने ज्यारे
भिन्नस्वरूपे ओळखे छे त्यारे जीव ज्ञानमां ज पोतापणे वर्ते छे अने क्रोधादि
परभावोने जुदा जाणीने तेनाथी ते निवर्ते छे. आ रीते भेदज्ञानवडे आत्मा आस्रवोथी
छूटे छे ने तेने संवरधर्म प्रगटे छे.
हुं आत्मा पोते कोण छुं? तेने ओळखवानी महेनत जीवे कदी करी नथी. पोते
पोताने भूलीने हुं देशनुं कंईक करी दउं, हुं नातनुं के कुटुंबनुं–गामनुं कांईक करी दउं एवी
मिथ्याबुद्धिथी चारगतिना वंटोळियामां चडयो छे,–घडीकमां आ गतिमां ने घडीकमां
बीजी गतिमां, एम स्वर्ग–नरकना अनंत अवतार जीवे कर्या पण आत्माना ज्ञान वगर
क््यांय जराय शांति न पाम्यो. हवे अहीं तो जे जीव आवा दुःख अने भवभ्रमणथी
छूटवा माटे प्रश्न पूछे छे एवा जीवनी वात छे. ते जीवने एटलुं तो लक्ष थयुं छे के आ
शुभाशुभ–आस्रवभावोमां मने शांति नथी एटले ते छोडवा जेवो तो छे ज. राग
वगरनुं मारुं स्वरूप समज्या वगर हुं संसारमां दुःखी थयो, पाप करीने तो दुःखी थयो,
ने पुण्य करीने पण दुःखी ज थयो. ते बंनेथी पार मारुं चिदानंद स्वरूप हुं जाणुं तो मने
सुख प्रगटे ने दुःख टळे.
(अनुसंधान पृ. ३३ उपर)