अने प्रभुजी ए बार भावनाओमां झुली रह्या छे.
छे आपनो अवतार!
मोटी भव्य यात्रा नीकळी हती, प्रभुना वैराग्य प्रसंगनी आवी भव्य यात्रा देखीने सौ
आनंदित थता हता. दीक्षाकल्याणक विधि वल्लभ बागमां वडवृक्षनी छाया नीचे थई
हती. वनना उपशांत वातावरण वच्चे आत्मध्यानमां लीन मुनिराज चारज्ञान सहित
शोभता हता. त्यार बाद दीक्षाप्रसंगने उचित प्रवचन थयुं हतुं तेमां मुनिदशानो परम
महिमा समजावीने तेनी भावना भावी हती. आजनुं दीक्षादिवसनुं वातावरण खूब ज
वैराग्यमय हतुं. मंडपना उपशांत वातावरण वच्चे वेदी पर बिराजमान जिनेन्द्र
भगवंतो पर अंकन्यासविधि गुरुदेवना सुहस्ते थई. कुल १० जिनबिंबो हता–जेमां
अमरेलीना बे तथा गढडाना एक हता. बपोरे नवा मंडपमां प्रवचन बाद जिनमंदिर–
वेदी–कळश शुद्धि थई हती. रात्रे भक्ति–भजननो कार्यक्रम हतो.
प्रसंग श्रेयांसकुमारने त्यां ऋषभमुनिराजना आहारनो बन्यो. ईक्षुरसना दानने कारणे,
अने तेना अक्षय फळने कारणे आहारदाननो ए दिवस (वैशाख सुद त्रीज) अक्षय
त्रीज तरीके जगप्रसिद्ध बन्यो. अहीं आहारदाननो लाभ कुचामनवाळा भाईश्री
हीरालालजीने अने तेमना परिवारने मळ्यो हतो. हजारो भक्तो ए आहारदानमां
अनुमोदना करी रह्या हता. बपोरे भगवानने केवळज्ञान थतां ईन्द्रोए समवसरणनी
रचना करीने केवळज्ञान पूजन कर्युं हतुं. रात्रे दोहरा–भजननो कार्यक्रम हतो.