Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : ३९ :
धर्मभावना अने दुर्लभबोधिभावना ए बार वैराग्यभावनाओ अध्यात्मनी जनेता छे.
अने प्रभुजी ए बार भावनाओमां झुली रह्या छे.
(७) भव–तन–भोग अनित्य विचारा, ईम मन धार तपे तप धारा;
सुर शिबिका धर कानन धाये, धनधन देव अहो धन जाये.
(८) प्रभो! निजस्वरूपमां समाई जवा माटे आप मुनि थईने मौन धारण
करशो, अने केवळज्ञान पाम्या पछी दिव्यध्वनिवडे मोक्षनो मार्ग प्रकाशित करशो. धन्य
छे आपनो अवतार!
–वैराग्यभर्या वातावरणमां ईन्द्रोए आवीने प्रभुनी दीक्षानो मंगलउत्सव
उजव्यो पालखीमां आरूढ थईने भगवाने वन तरफ प्रस्थान कर्युं. दीक्षा–कल्याणकनी
मोटी भव्य यात्रा नीकळी हती, प्रभुना वैराग्य प्रसंगनी आवी भव्य यात्रा देखीने सौ
आनंदित थता हता. दीक्षाकल्याणक विधि वल्लभ बागमां वडवृक्षनी छाया नीचे थई
हती. वनना उपशांत वातावरण वच्चे आत्मध्यानमां लीन मुनिराज चारज्ञान सहित
शोभता हता. त्यार बाद दीक्षाप्रसंगने उचित प्रवचन थयुं हतुं तेमां मुनिदशानो परम
महिमा समजावीने तेनी भावना भावी हती. आजनुं दीक्षादिवसनुं वातावरण खूब ज
वैराग्यमय हतुं. मंडपना उपशांत वातावरण वच्चे वेदी पर बिराजमान जिनेन्द्र
भगवंतो पर अंकन्यासविधि गुरुदेवना सुहस्ते थई. कुल १० जिनबिंबो हता–जेमां
अमरेलीना बे तथा गढडाना एक हता. बपोरे नवा मंडपमां प्रवचन बाद जिनमंदिर–
वेदी–कळश शुद्धि थई हती. रात्रे भक्ति–भजननो कार्यक्रम हतो.
वैशाख सुद एकमनी सवारे प्रवचन बाद श्री ऋषभमुनिराजना आहारदाननो
महान प्रसंग बन्यो हतो. आ चोवीसीमां असंख्य वर्ष बाद सौथी पहेलां आहारदाननो
प्रसंग श्रेयांसकुमारने त्यां ऋषभमुनिराजना आहारनो बन्यो. ईक्षुरसना दानने कारणे,
अने तेना अक्षय फळने कारणे आहारदाननो ए दिवस (वैशाख सुद त्रीज) अक्षय
त्रीज तरीके जगप्रसिद्ध बन्यो. अहीं आहारदाननो लाभ कुचामनवाळा भाईश्री
हीरालालजीने अने तेमना परिवारने मळ्‌यो हतो. हजारो भक्तो ए आहारदानमां
अनुमोदना करी रह्या हता. बपोरे भगवानने केवळज्ञान थतां ईन्द्रोए समवसरणनी
रचना करीने केवळज्ञान पूजन कर्युं हतुं. रात्रे दोहरा–भजननो कार्यक्रम हतो.
वैशाख सुद बीज आवी...ने गुरुजन्मनी मंगल वधाई लावी. आजे भक्तोने