: ३८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
मंडप...सवारमां जुओ तो भस्मीभूत! आवो क्षणभंगुर संसार! फागण वद नोमे
ज्यारे प्रभुना जन्मोत्सव निमित्ते देवदेवीओ भक्ति अने नृत्य करी रह्या हता त्यारे
नीलंजसा देवीनुं आयुष्य एकाएक पूरुं थयुं, ने ए क्षणभंगुरता देखीने भगवान
संसारथी विरक्त थया.
नीलंजसा देवीना मरणथी संसारनी क्षणभंगुरता ऋषभदेवे दिव्यज्ञान वडे देखी
लीधी, अने संसारथी विरक्त थया; ए क्षणभंगुरता तो ऋषभदेवे ज देखी, ज्यारे अहीं
प्रभुना वैराग्य प्रसंगे तो सौने नजरे देखाय एवो क्षणभंगुरतानो बनाव बनी गयो...
राते झगमगतो देखेलो आखो मंडप सवार पहेलां तो क्षणभरमां विलीन थई गयो
अने अनित्यताए पोतानुं स्वरूप जगत समक्ष खुल्लुं कर्युं. आवी अनित्यता देखीने
भगवान ऋषभदेव संसारमां केम रहे? तरत भगवान संसारथी विरक्त थईने बार
वैराग्य भावना भाववा लाग्या ने दीक्षा माटे तैयार थया. तरत लौकांतिक देवोए
आवीने स्तुतिपूर्वक वैराग्यनुं अनुमोदन करतां कह्युं –
(१) हे प्रभो! आत्मानी अनुभूतिना बळे आ संसारथी आप विरक्त थया
छो, ने साक्षात् मोक्षमार्ग माटे आप तैयार थया छो; ते माटे आप जे वैराग्य–
भावनाओ भावी रह्या छो तेमां अमारी अनुमोदना छे.
(२) लक्ष्मी शरीर सुखदुःख अथवा शुं, मित्र जनो अरे;
जीवने नथी कंई ध्रुव, ध्रुव उपयोगआत्मक जीव छे.
– आवा ध्रुवस्वभावनी भावना वडे हे प्रभो! आप शीघ्र केवळज्ञान पामो ने
दिव्यध्वनि वडे मोक्षना दरवाजा खुल्ला करो.
(३) प्रभो! आप जे वैराग्यभावना भावी रह्या छो तेने शीघ्र अमलमां मुको;
ने दीक्षा लईने, आ भरतक्षेत्रमां असंख्य वर्षथी बंध रहेलो मुनिमार्ग खुल्लो करो.
(४) विद्युत लक्ष्मी प्रभुता पतंग, आयुष्य ते तो जलना तरंग,
पुरंदरी चाप अनंग रंग, शुं राचीए ज्यां क्षणनो प्रसंग.
(५) हे आदिनाथ देव! हम लौकांतिकदेव अन्य किसी कल्याणकमें नहीं आते,
मात्र आपके दीक्षाकल्याणक के प्रसंग पर आपके वैराग्यकी अनुमोदना करनेको आते है।
आत्मज्ञानीको ही सच्चा वैराग्य होता है और वही संसारमें शरण है।
(६) अध्रुव, अशरण, संसार, एकत्व, अशुची, आस्रव, संवर, निर्जरा,
लोकभावना