: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : ३७ :
असंख्य प्रदेशे जाणे धर्मना अंकुरा फूटी रह्या छे, एवो महान आनंद थाय छे. आखी
अयोध्यानगरीमां प्रभुना जन्मनो आनंदोत्सव मनावो.
–आम सर्वत्र आनंद–मंगल छवाई रह्यो छे...मंगल वाजां वागी रह्या छे,
पुष्पवृष्टि–रत्नवृष्टि थई रही छे...हजारो नगरजनो जन्मोत्सव जोवा उमंगभेर आवी
रह्या छे. आपणे पण ए आनंदमां भाग लईए. अहा, राजदरबारमां देवांगनाओ
आनंदथी मंगल–नृत्य करती करती प्रभुगुण गाई रही छे. ऐरावत पर ईन्द्र–शची
अयोध्या आवी पहोंच्या...ईन्द्राणीए माताजी पासे जई बाल तीर्थंकरने पोतानी गोदमां
तेडीने कृतार्थता अनुभवी ने पछी ते ईन्द्रने सोंप्या...जन्माभिषेक माटे प्रभुजीनी
सवारी मेरु पर्वत तरफ चाली. अहा, शी अद्भुत एनी शोभा! ऐरावत पर तीर्थंकर
ऋषभकुमारने देखी देखीने जनता आश्चर्य अनुभवती हती. भावनगरनी जनता तो
मुग्ध बनी गई हती के अरे, आपणी आ भावेणी नगरी आजे एकाएक अयोध्या
क्यांथी बनी गई! नगरजनोना कहेवा प्रमाणे भगवाननी प्रतिष्ठानो आवो
पंचकल्याणक महोत्सव भावनगरना आंगणे अढीसो वर्षे उजवाई रह्यो छे. प्रभुजीनी
जन्माभिषेकनी सवारीमां त्रण हाथी उपरांत केटलोय ठाठमाठ वैभव हतो. नगरजनोने
आश्चर्य पमाडती–पमाडती, अने तीर्थंकरना अद्भुत धर्मवैभवने प्रगट करती–करती
प्रभुजीनी सवारी मेरूपर्वते (गंगाजळीया तळावनी मध्यमां) आवी पहोंची. ईन्द्रोए
मेरुनी त्रण प्रदक्षिणा करी...ने मेरु उपर ऋषभतीर्थंकरनो जन्माभिषेक शरू कर्यो.
प्रभुजीना जन्माभिषेकनुं गौरव पोताने मळवाथी ए मेरु पर्वत मध्यलोकमां सौथी
ऊंचो बनी गयो.
हजारो मनुष्यो आनंदपूर्वक जिनेन्द्रदेवनो जन्माभिषेक नीहाळी रह्या हता.
भगवानना आत्माए जन्म पूरा करी लीधा, जन्मरहित थई गया, ने जगतने
जन्ममरण रहित थवानो वीतरागमार्ग उपदेश्यो...एवा प्रभुने देखीने भक्तोने
मुक्तिमार्गनी प्रेरणा जागती हती. जन्माभिषेक पछी ईन्द्रो बालतीर्थंकरने पुन:
अयोध्या लाव्या, अने माता–पिताने पुत्र सोंपीने आनंदथी तांडवनृत्य कर्युं. अनेक
भक्तो पण आनंदथी नाची ऊठया. धन्य तीर्थंकर–अवतार! धन्य एना भक्तो!
बपोरे बालतीर्थंकर ऋषभकुमारने माताजी तथा ईन्द्राणीओ पारणामां झुलावती
हती. रात्रे ऋषभकुमारनी राजसभानुं द्रश्य थयुं हतुं.
(चै. वद अमास) आजे प्रभुना वैराग्यनो अने दीक्षा कल्याणकनो दिवस हतो;
अने एकाएक वैराग्य पमाडे एवो बनाव बनी गयो. आगली राते झगझगाट करतो