: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : ४३ :
पासे अंतरमां ज बिराजे छे, पण परनी ममता आडे पोतानो प्रभु देखातो नथी. हवे
हे जीव! मनुष्यपणुं अने सत्समागम मळ्यो तेमां आवा तारा आत्माने ओळख, आवी
ओळखाण करवी ते महान मांगलिक छे.
मंगलप्रवचन बाद वेदी–प्रतिष्ठा महोत्सवना मंगल प्रारंभमां प्रतिष्ठामंडपमां
जैनझंडारोपण थयुं, झंडारोपण पुनाना भाईश्री नाथालाल विठ्ठलदासे कर्युं हतुं. अने
मंडपमां जिनेन्द्रभगवानने बिराजमान करवानी विधि सुरतना भाईश्री दिनेशचंद्र
मनहरलाले करी हती.
बपोरे प्रवचनना प्रारंभमां ज नमो अरिहंताणं नो अर्थ समजावतां गुरुदेवे
कह्युं के आमां अरिहंत परमात्माने नमस्कार कर्या छे; ते अरिहंत केवा छे? आत्मा
ज्ञानआनंदस्वरूप छे, तेनुं भान करीने जेमणे मोहादि अरिने हण्या अने पूर्ण ज्ञान–
आनंददशा प्रगट करी ते सर्वज्ञदेव अरिहंत परमात्मा छे. तेवी दशा प्रगट करवी ते
आत्माने ईष्ट छे, वल्लभ छे, मंगल छे.
–आवा अरिहंत परमात्माने नमस्कार करीने आ मंगल शरूआत थाय छे. आ
आत्मानो स्वभाव पण अरिहंत परमात्मा जेवो छे; तेनुं भान करतां अरिहंतने साचा
नमस्कार थाय छे.
छ वर्ष पहेलां (सं. २०२० मां) आ कानातळाव गामे आवेला त्यारे प्रवचनमां
लींडीपीपरनो दाखलो आपीने आत्मानुं स्वरूप समजाव्युं हतुं. जेम लींडीपीपरना दरेक
दाणामां चोसठ पोरी तीखास रहेली छे ते ज तेमांथी प्रगटे छे; तेम अरिहंत परमात्मा
जेवा शुद्ध गुणो दरेक आत्मामां छे, तेने ओळखतां ते प्रगटे छे. दरेक जीवमां
ज्ञानस्वभाव छे. आ माखीनां टोळा देखाय छे तेमां पण जीव छे, तेनामां पण
परमात्मस्वभाव भर्यो छे; पण ते जीवो पोताना स्वभावने भूलीने संसारमां रखडी
रह्या छे, ने महा दुःखी छे.
अहीं अरिहंतने नमस्कार कर्या एटले अरिहंत जेवुं पोतानुं स्वरूप छे एम
स्वीकार्युं. आत्मानुं स्वरूप केम साधवुं? ते वात अहीं राजानी सेवानुं द्रष्टांत आपीने
(समयसार गा. १७–१८ मां) समजावे छे.
बे हजार वर्ष पहेलां मद्रास पासेना पोन्नूर पर्वत पर एक वीतरागी दिगंबर
संत रहेता हता, तेमनुं नाम कुंदकुंदाचार्य. तेओ अहींथी विदेहक्षेत्रमां गया हता अने
त्यां बिराजमान साक्षात् परमात्मा सीमंधरभगवाननी दिव्यवाणी