: ४४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९६
सांभळी हती. पोताने आत्मानो घणो अनुभव अने घणा आनंदनुं वेदन हतुं. एवा
आचार्यदेवे आ समयसार रच्युं छे ने तेमां शुद्ध आत्मानुं स्वरूप समजाव्युं छे.
[हजार दोढहजार माणसोनी सभा, जेमां वाणीया करतां कणबी भाईओनी
संख्या वधु, एवी सभामां समयसार वंचातुं हतुं ने गुरुदेव देहातीत आत्मानुं स्वरूप
समजावता हता; सौ श्रोताओ उत्कंठाथी सांभळता हता. ते देखीने थतुं के वाह!
गुरुदेवना प्रतापे केवो धन्य अवसर आव्यो छे के आवा नानकडा गामडाना कणबी
भाईओ पण शुद्धात्मानी वात होंशथी सांभळी रह्या छे.)
आत्माना गुणोमां जे मोटो होय ते ज साचो शेठ (एटले के श्रेष्ठ) छे; बाकी
परचीजथी पोतानी मोटाई लेवा मांगे ते मोटो नथी पण भीखारी छे. जेने संसारनी
धन वगेरेनी के स्वर्गनी तृष्णा छे ते तो भीखारी छे. अहीं तो जेने संसारनी कोई
भावना नथी, जे मोक्षनो ज अर्थी छे एवा मुमुक्षु जीवे आत्मानी सिद्धि माटे आत्मानी
सेवा केवी रीते करवी, ते वात समजावे छे.
प्रथम तो जेनुं कल्याण करवानुं छे तेनुं स्वरूप ओळखवुं जोईए. आत्मा पोते
पोतानुं स्वरूप जाण्या वगर कल्याण थाय नहीं.
[प्रवचन पछी पंच परमेष्ठी भगवाननुं पूजन विधान थयुं हतुं. चै. वद छठ्ठनी
सवारमां कानातळावना पटलाणी सौ. मुक्ताबेन वल्लभभाईना हस्ते मंगल–
कुंभस्थापन (नांदिविधान) थयुं हतुं. अने ईन्द्रप्रतिष्ठा थई हती. चार ईन्द्र ईन्द्राणीमां
प्रथम ईन्द्र सुरतना दीनेशकुमार मनहरलाल, बीजा ईन्द्र सावरकुंडलाना वसंतकुमार
जगजीवन, अने बीजा बे ईन्द्रो कानातळावना देवजीभाई पटेल तथा हरिभाई पटेल
हता.)
प्रवचन पछी ईन्द्रोनुं जुलूस नीकळ्युं हतुं; नाना गाममां हाथी पर मोटुं
ईन्द्रसरघस देखीने लोको आश्चर्य अनुभवता हता. बपोरे ईन्द्रोद्वारा यागमंडल पूजन
थयुं हतुं.
[अहीं पाणीनी घणी छत छे, ने खेडूतभाईओ समृद्ध छे. खेतीद्वारा थती विशेष
जीवहिंसाथी घणा खेडूतो मनमां दुःख अनुभवे छे–ए तेमनी आर्यता छे. उत्सवमां
आवेला पांचसो जेटला महेमानोने घरे घरे ऊतारा आप्या हता; तथा उत्सवनी
खुशालीमां सौने माटे शेरडीना ताजा रसनुं परब खुल्लुं मूकी दीधुं हतुं. प्रवचन पण सौ
प्रेमथी सांभळता हता.)