: वैशाख : २४९६ आत्मधर्म : ४७ :
धर्मी जाणे छे के हुं स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष आत्मा छुं. प्रत्यक्षज्ञानस्वरूप हुं छुं.
ज्ञानमां परोक्षपणुं रहे ते पण आत्मानुं स्वरूप नथी, त्यां राग ईन्द्रियोनी तो शी वात?
एनाथी तो आत्मा जुदो छे. विकल्पनुं स्वामीपणुं पण मारा ज्ञानस्वरूपमां नथी, एटले
हुं ममतारहित छुं; ज्ञानदर्शनथी हुं पूरो छुं ने रागथी हुं खाली छुं. आवा आत्मामां
एकाग्र थतां ज अज्ञानरूप आस्रवो छूटी जाय छे.
जिज्ञासु शिष्ये एम पूछयुं छे के पुण्य–पापरूप आस्रवोथी हुं केम छूटुं? पुण्यमां
पण अनंतकाळथी हुं प्रवर्त्यो, अनंतवार पुण्य कर्या, छतां सुख न पाम्यो, एटले ते
पुण्यथी पण छूटवा जेवुं छे–एटलुं लक्षमां लईने शिष्य तेनाथी छूटवा मांगे छे.
पोताना ज्ञान ने आनंदथी कोई छूटो पडवा मांगे नहीं, केमके ते तो आत्मानुं
सहज स्वरूप ज छे; शुभ–अशुभ रागादि परभावोथी जीव छूटवा मांगे छे, केमके ते
आत्मानुं स्वरूप नथी पण आत्माने दुःखदायक छे. आत्माना ज्ञान–आनंदस्वभावथी ते
रागादि भावो जुदा छे, एकमेक नथी, तेथी तेनाथी छूटी शकाय छे. आम पहेलां
ज्ञानस्वभाव अने रागादि विभावनी भिन्नता लक्षमां लईने तेनो निर्णय करवो
जोईए.
जीवे पोतानुं स्वरूप कदी निर्णयमां लीधुं न हतुं, तेनो साचो निर्णय करीने
स्वसन्मुख थवुं ते अनुभवनो मार्ग छे, ते हितनो उपाय छे.
कुंडला शहेरना प्रवचनमां गुरुदेव कहे छे के हे भाई! आत्माना हितने माटे तुं
एवो निर्णय कर के हुं आत्मा एक अखंड स्वानुभवप्रत्यक्ष छुं. आवो निर्णय करीने ते
तरफ वळतां आत्मा पोते आनंदपणे अनुभवमां आवशे.
हुं ज्ञानस्वभाव छुं ने रागरूपे थवानो मारो स्वभाव नथी, आम नक्की करीने
रागथी छूटवा मांगे छे. जे जीव रागरूपे परिणमवानो पोतानो स्वभाव माने, अथवा
ते रागवडे धर्म थशे एम माने, तो ते जीव रागथी छूटवा केम मांगे? जेने पोतानुं माने
तेने केम छोडे? माटे पहेलां ज ए निर्णय कर्यो छे के आ रागादि मारुं स्व नथी ने हुं
तेनो स्वामी नथी, हुं तो अखंड ज्ञान ज छुं. ज्ञाननी शुद्धतामां रागनो तो अभाव छे.
आत्मा अनंत ज्ञानादि स्वभावथी पूर्ण छे, पण तेमां ते प्रवर्ततो नथी. तो क््यां
प्रवर्ते छे? राग–द्वेष–क्रोधादि परभावोमां पोतापणे प्रवर्ते छे; ते प्रवृत्ति ज्ञानथी विरुद्ध
छे एटले दुःखदायक छे. दरेक आत्मा ज्ञानानंदस्वरूप छे; ते पोतानुं स्वरूप ओळखीने
तेमां ज्यारे प्रवर्ते त्यारे तेनुं कल्याण थाय; बीजो कोई कहे के हुं तेनुं कल्याण करी दउं–
तो ते तेनी भूल छे; तेणे पोताना ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळख्यो नथी. बहारनी
अनुकूळ–प्रतिकूळ सामग्री तो जीवोने पोतपोताना पुण्य–पाप अनुसार मळे छे, ते
सामग्रीमां सुख–दुःख नथी, तेम ज बीजो ते सामग्री आपतो नथी.