Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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शरीरनी के संयोगनी स्थिति मर्यादित छे; आत्मा ते शरीरनी स्थिति जेटलो नथी,
आत्मा तो अनादि अनंत छे, ने पोताना ज्ञानमय जीवनथी ते जीवनार छे. आत्माना
जीवनने कोई हणी शके नहीं एटले आत्मानुं मृत्यु कदी थाय नहीं. आवा आत्माने
ओळखतां रागथी भिन्न ज्ञानपरिणति थाय तेनुं नाम मोक्षमार्ग छे.
(बाकीनुं आवता अंके)
श्रुतपंचमी
वीतरागी ज्ञाननी अखंडधारानुं महानपर्व–जेनी साथे गीरनार अने
अंकलेश्वरनां नाम जोडायेला छे, अने धरसेन–पुष्पदंत–भूतबली तथा वीरसेन स्वामी
जेवा श्रुतधर वीतरागी संतो द्वारा जे ज्ञान मुमुक्षुओने भेट आपवामां आव्युं छे एवा
ज्ञाननी अच्छिन्नधारानुं महानपर्व एटले श्रुतपंचमी–जेठ सुद पांचम. जेम
समयसारादि महान वीतरागी अध्यात्मशास्त्रोनी स्वाध्याय अने प्रचार जरूरी छे तेम
षट्खंडागम–गोमट्टसार वगेरे पण वीतरागी सिद्धांतशास्त्रो छे, तेमनी पण स्वाध्याय
अने प्रचार जरूरी छे. श्रुतना चारे अनुयोगनी खूबखूब स्वाध्यायवडे श्रुतपंचमी
ऊजवो. जिनपूजानी जेम ज वीतरागी श्रुतनी स्वाध्याय मुमुक्षुजीवोनुं कर्तव्य छे.
बे वात:– –
* आत्मधर्म अंक ३१६ पृ. २९ लाईन १० मां वच्चे थोडुं वाक््य छापवुं रही
गयुं छे ते उमेरीने आ प्रमाणे वाचंवुं –
(आत्माने द्रव्यअपेक्षाए...सादिसांतपणुं छे एम छपायुं छे तेने बदले–)
आत्माने द्रव्यअपेक्षाए अनादिअनंतपणुं छे ने पर्यायअपेक्षाए सादिसांतपणुं छे;
* ज्ञानचक्षु–पुस्तक पृ. ८५ लाईन २३–२४ मां वच्चे एक वाक््य छापवुं रही
गयुं छे ते उमेरीने आ प्रमाणे वांचवुं–
“नैगम, संग्रह अने व्यवहार ए त्रणे नयो कारण–कार्यभावने ग्रहण करे छे,
परंतु शब्दादि चार नयो कारण–कार्यभावने ग्रहण करता नथी, पण कारण–कार्यभाव
वगर सीधी वर्तमापर्यायने ग्रहण करे छे.”
उपरोक्त संशोधनो प्रत्ये ध्यान खेंचनार महानुभावोनो आभार.
जरूरी सूचना
आ अंकमां केटलाक अगत्यना लेखो, वैराग्य समाचार, निबंधयोजनानी विगत
अने ८१ बोलनी पुष्पमाळा वगेरेनो समावेश थई शकेल नथी; ते बधुं आवता अंकमां
अपाशे.