Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
मारो जैनधर्म
(जैन बाळकोनुं धर्मगीत : नवी जैनबाळपोथीमांथी)
धर्म मारो धर्म मारो धर्म मारो रे...
प्यारो प्यारो लागे जैनधर्म मारो रे...१.
ऋषभ थया वीर थया, धर्म मारो रे,
बलवान बाहुबली सेवे, धर्म मारो रे...२.
भरत थया, राम थया, धर्म मारो रे,
कुंदकुंद जेवा संत थया धर्म मारो रे...३.
सीता–चंदना–अंजना थया धर्म मारो रे,
ब्राह्मी–राजुल–मात शोभावे धर्म मारो रे...४.
सिंह सेवे वाघ सेवे धर्म मारो रे,
हाथी वानर सर्प सेवे धर्म मारो रे...प.
आत्मानुं ज्ञान आपे धर्म मारो रे,
रत्नत्रयनां दान आपे धर्म मारो रे...६.
समकित जेनुं मूळ छे ए धर्म मारो रे,
मने सुख आपे मोक्ष आपे धर्म मारो रे...७.
धर्म मारो धर्म मारो धर्म मारो रे,
प्यारो लागे व्हालो लागे धर्म मारो रे...८.
[पाठशाळाओमां तेमज भगवाननी रथयात्रा वगेरे प्रसंगोमां आ गीत गवाय छे.)
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: मगनलाल जैन अजित मुद्रणालय: सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत: २७००