रागादिथी भिन्न अने खंडखंड ज्ञानथी पण पार एवो अखंड ज्ञायकस्वभावी
आत्मा आचार्यदेव ओळखावे छे. आवा आत्मानो अनुभव ते
सर्वज्ञपरमात्मानी खरी स्तुति छे. रागमां ऊभो रहीने सर्वज्ञपरमात्मानी स्तुति
थई शकती नथी, सर्वज्ञपरमात्मानी जातमां भळीने, एटले के तेमना जेवो अंश
पोतामां प्रगट करीने ज सर्वज्ञभगवाननी निश्चयस्तुति थाय छे. एवी साची
स्तुतिनुं स्वरूप आ ३१मी गाथामां कहे छे–
निश्चय विषे स्थित साधुओ भाखे जितेन्द्रिय तेहने.
जेवो छे. समयसार गा. ७र वगेरेमां आत्माने ज भगवान कह्यो छे. गुरुना
उपदेशथी पोताना परमेश्वर आत्माने जाण्यो एम गा. ३८ मां कह्युं छे.
आस्रवो–पुण्य–पाप ते तो अशुची–अपवित्र छे ने भगवान आत्मा तो अत्यंत
पवित्र छे–एम गा. ७र मां कह्युं छे. आ रीते ज्ञानानंदस्वभावी आत्मा पोते ज
महिमावंत छे, ने केवळज्ञान प्रगट करीने परमात्मा थवानी तेनामां ज ताकात
छे. आवा भगवान आत्माने स्वानुभवथी ओळखवो ते अरिहंत परमात्मानी
प्रथम साची स्तुति छे.
पण तोडीने पोते वीतराग सर्वज्ञपरमात्मा थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे.
आवा स्वभावनी सन्मुख थया वगर सर्वज्ञभगवाननी साची स्तुति थती नथी
एटले के सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
एटले के ते त्रणेने आत्माथी भिन्न जाणीने, एक ज्ञायकस्वभावपणे पोताने