Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
भिन्न, रागादिथी भिन्न अने खंडखंड ज्ञानथी पण पार एवो अखंड
ज्ञायकस्वभावी आत्मा आचार्यदेव ओळखावे छे. आवा आत्मानो अनुभव ते
सर्वज्ञपरमात्मानी खरी स्तुति छे. रागमां ऊभो रहीने सर्वज्ञपरमात्मानी स्तुति
थई शकती नथी, सर्वज्ञपरमात्मानी जातमां भळीने, एटले के तेमना जेवो अंश
पोतामां प्रगट करीने ज सर्वज्ञभगवाननी निश्चयस्तुति थाय छे. एवी साची
स्तुतिनुं स्वरूप आ ३१मी गाथामां कहे छे–
जीती ईन्द्रियो ज्ञानस्वभावे अधिक जाणे आत्मने,
निश्चय विषे स्थित साधुओ भाखे जितेन्द्रिय तेहने.
४. सर्वज्ञभगवाननी साची स्तुति एटले के आत्माना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख
थईने तेना श्रद्धा–ज्ञान–अनुभव करवा ते; परमार्थे आ आत्मा सर्वज्ञभगवान
जेवो छे. समयसार गा. ७२ वगेरेमां आत्माने ज भगवान कह्यो छे. गुरुना
उपदेशथी पोताना परमेश्वर आत्माने जाण्यो एम गा. ३८मां कह्युं छे. आस्रवो–
पुण्य–पाप ते तो अशुची–अपवित्र छे ने भगवान आत्मा तो अत्यंत पवित्र
छे–एम गा. ७२मां कह्युं छे. आ रीते ज्ञानानंदस्वभावी आत्मा पोते ज
महिमावंत छे, ने केवळज्ञान प्रगट करीने परमात्मा थवानी तेनामां ज ताकात
छे. आवा भगवान आत्माने स्वानुभवथी ओळखवो ते अरिहंत परमात्मानी
प्रथम साची स्तुति छे.
५. आत्मानो स्वभाव भगवान थवानो छे; पामर रह्या करे ने कोईकनी भक्ति
कर्या करे एवो एनो स्वभाव नथी, पण पामरता तोडीने, भक्ति वगेरेनो राग
पण तोडीने पोते वीतराग सर्वज्ञपरमात्मा थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे.
आवा स्वभावनी सन्मुख थया वगर सर्वज्ञभगवाननी साची स्तुति थती नथी
एटले के सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
६. आ शरीरनी पर्यायरूप जड द्रव्येन्द्रियो, ते ईन्द्रियो तरफ वळेलुं खंडखंड ज्ञान ते
भावेन्द्रियो, अने ते ईन्द्रियज्ञानना विषयरूप बाह्यपदार्थो,–ए त्रणेने जीतीने
एटले के ते त्रणेने आत्माथी भिन्न जाणीने, एक ज्ञायकस्वभावपणे पोताने
अनुभववो तेनुं नाम जीतेन्द्रियपणुं छे. ईन्द्रियोने जे पोतानुं स्वरूप माने तेने
जीतेन्द्रियपणुं थाय नहीं; एटले अतीन्द्रियज्ञानमय एवा अरिहंतनी परमार्थ
उपासना तेने होय नहीं.