Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ९ :
अरिहंत परमात्मानी
साची स्तुति
भावनगर शहेरमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे
समयसार गाथा ३१ तथा ऋषभजिन–स्तोत्र उपरनां प्रवचनोमांथी
दोहन करेला ८१ बोल पू. गुरुदेवनी ८१ मी जन्मजयंतिना उपलक्षमां
गतांकमां आपवाना हता; पण मात्र दश बोल ज आवी शक्या हता
तेथी अहीं एक साथे ८१ बोल आपवामां आव्या छे. – ब्र. ह. जैन
१. अहीं जिनेन्द्रभगवान सर्वज्ञ परमात्मानी स्थापनानो उत्सव थाय छे.
सर्वज्ञभगवानने ओळखीने तेमनी परमार्थ–स्तुति केम थाय? ते वात
आचार्यदेव आ समयसारनी ३१मी गाथामां समजावे छे. दरेक आत्मा
सर्वज्ञस्वभावथी परिपूर्ण छे, तेनुं भान करीने एकाग्रता द्वारा जेओ सर्वज्ञ
परमात्मा थया, तेमनी वाणीमां आत्मानुं जेवुं शुद्धस्वरूप कह्युं, तेवुं
वीतरागीसंतोए जाते अनुभवीने शास्त्रमां कह्युं छे. एवुं आ समयसार शास्त्र
छे, तेना लिखितंग श्री कुंदकुंदाचार्य अने साक्षी सर्वज्ञपरमात्मा
सीमंधरभगवाननी!
२. सर्वज्ञदशा प्रगट थवानी ताकात दरेक आत्मामां छे. एवी सर्वज्ञदशा प्रगट थतां
शरीर पण एवुं स्फटिक जेवुं परम औदारिक थई जाय छे के तेमां जोतां जोनारने
सातभव देखाय छे ए सर्वज्ञने क्षुधा होती नथी, रोग थतो नथी के खोराक
होतो नथी; होठना हलनचलन वगर सहजपणे दिव्य वाणी नीकळे छे. आवी
अलौकिक वीतरागदशा पामेला सर्वज्ञपरमात्मा अत्यारे पण विदेहक्षेत्रमां
बिराजे छे. एवा सीमंधरपरमात्मा पासे अहींथी कुंदकुंदाचार्यदेव गया हता. आ
वात साक्षात् सिद्ध थयेली छे. बे हजार वर्ष पहेलां थयेला आवा आचार्यदेवे आ
समयसार शास्त्र रच्युं छे. जैनशासननुं आ अलौकिक शास्त्र छे. तेमां आत्मानी
वार्ता छे.
३. आत्माना स्वभावनी वात जीवे अंदरना प्रेमपूर्वक कदी सांभळी नथी; राग–द्वेष
अने पुण्य–पापनी वात सांभळीने तेनो आदर कर्यो छे. अहीं देहथी