: १८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
आवी जाय छे के हवे अल्पकाळमां ज सिद्धदशा थशे. स्वानुभवथी शरूआत थई चुकी छे
ने अल्पकाळमां पूर्ण परमात्मदशा खीली जशे.–आवा भणकार जेने न आवे ने शंका
रहे तेने सम्यग्दर्शननी खबर ज नथी. सम्यग्दर्शन अलौकिक चीज छे, लोकोने तेना
महिमानी खबर नथी. सम्यग्दर्शन थयुं तेना घरमां (आत्मामां) परमात्मा आवीने
वस्या...ते परमार्थ वास्तु थयुं.
मोक्ष कोण पामे छे?
जेओ पोताना शुद्धात्माने जाणीने ते स्वद्रव्यनो आश्रय करे छे तेओ ज
नियमथी मोक्ष पामे छे. जेओ आवा शुद्ध आत्मानो आश्रय नथी करता ने रागादि
परभावमां अटके छे तेओ कर्मथी छूटता नथी. व्यवहारना आश्रय वडे बंधन छे;
शुद्धनयना आश्रय वडे मोक्ष छे,–आ जैनसिद्धांतनो नियम छे.
अरे, पोताना वस्तुस्वभावने जाण्या वगर जीवो बहारना क्रियाकांडमां एटले
जडक्रियामां ने शुभरागमां धर्म मानीने साचो मोक्षमार्ग भूली रह्या छे, एवा जीवो
उपर ज्ञानीने करुणा आवे छे; अने कहे छे के हे भाई! तारा चैतन्यनी अनंत गुणनी
संपदा तारा धाममां ज छे. रागमां के देहनी क्रियामां तारा गुणनी संपदा नथी. तारी
चैतन्यसंपदाने तुं संभाळ. चैतन्यसंपदा ने देखतां ज आनंद अने मोक्षमार्ग थशे.
देव–गुरु–शास्त्र, व्रतादि, ते संबंधी जेटला शुभभाव भगवाने कह्या छे, ते बधा
पराश्रितभावो छे, अने तेने भगवाने बंधनुं ज कारण कह्युं छे, ते मोक्षनुं कारण नथी.
मोक्षनुं कारण तो स्वाश्रित एवो वीतरागभाव ज छे. चैतन्यमां निवास करीने आवो
वीतरागभाव प्रगट करवो ते अपूर्व वास्तु छे.
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(वासणा चोधरीवाळा ब्र. केशवलालजी जेओ गुजरातमां सारो धर्मप्रचार करे
छे, तेमणे लखेलुं अध्यात्मभजन (सुधारा साथे) अहीं आपवामां आवे छे:–)
चेतनरूप हुं आत्मा चिदानंद भगवान, शुद्ध–बुद्ध चैतन्य छुं, जडथी जुदुं रूप,
अजर अमर अविनाशी ने ज्ञानपूंजनुं धाम. (१) पुद्गल के पुण्य–पापथी भिन्न हुं चेतन भूप. (४)
सिद्ध स्वरूप हुं आतमा निरंजन भगवान, चेतन लक्षण माहरुं शुद्ध उपयोगी जाण,
अखंडभाव ज्ञायक सदा गुणअनंत भगवान. (२) निजानंद भरपूर हुं चेतनरूप भगवान, (प)
अनंत बळ छे मुजमां अनंत दर्शन ज्ञान, राग द्वेषथी भिन्न छुं निश्चय ज्ञानस्वरूप,
अव्याबाधस्वरूप हुं सहजानंद भगवान, (३) जे अनुभवशे एहने ते थाशे भगवान. (६)