Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
वैराग्यप्रेरक उत्तम लेख–
[आ लेखना लेखक मुकेशकुमार वी. जैन ता. २९–३–७० ना रोज आ लेख
लख्या बाद ता. १०–४–७० ना रोज २१ वर्षनी वये स्वर्गवास पामी गया छे. लेख
साथेना पत्रमां तेओ लखे छे के–ईन्दोरथी तमारा नानाभाईना वंदन...आत्मधर्मनुं
नियमित वांचन करुं छुं; तेथी धर्मतत्त्वनुं जे थोडुंघणुं ज्ञान प्राप्त थयुं छे ते पू.
गुरुदेवने ज आभारी छे. वळी आत्मधर्ममां बालविभाग द्वारा नवी पेढीने
बचपणथी ज धर्मना संस्कार आपो छो, ने ‘कुमळा छोडने जेम वाळीए तेम वळे,–
एवुं ज तमे अमारा जेवा हजारो बाळको उपर प्रयोग करीने, हंमेशा
जिनभगवाननां दर्शन करवानुं, रात्रिभोजन छोडवानुं, सीनेमा न जोवानुं,
वगेरेनी झुंबेश चलावी ते प्रशंसनीय छे. आ वैशाख मासनी निबंधयोजना मने
गमी; जोके अत्यारे परीक्षानी मोसम होवा छतां वैराग्यप्रेरक धार्मिक लेख लखीने
मोकलतां मने आनंद थाय छे. बराबर जन्मदिवसे अभिनंदन अने भगवाननो
फोटो मळतां अत्यंत आनंद थाय छे...पण आ फोटा तो मारा मित्रोने बहुज गमता
होवाथी तेओ लई जाय छे. गुरुदेव खंडवा तथा रतलाम पधार्या त्यारे मारा
माता–पिता त्यां गयेला; अहीं ईंदोरमां काचनुं जिनमंदिर छे त्यां दर्शन करवा
घणीवार जाउं छुं. आ साथे निबंधरूप लेख मोकलुं छुं.)
‘जे स्वरूप समज्या विना पाम्यो दुःख अनंत,
समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरुभगवंत.’
ओ धर्मप्रेमी बंधु! तुं आपणा कहानगुरुदेवनी अमृतवाणीनो तारा जीवनमां
अमल करी आत्माने ओळखी मोक्षना अनंत आनंदसागरमां एक वखत जरूर डुबकी
लगाव. ए अजोड सुख अने भगवान महावीर जेवा आत्माना दर्शन करवाथी तने आ
मोह–माया–राग–द्वेष–हर्ष–शोक बधुं बंधनरूप जणाशे. हे जीव, तारा प्रमादरूपी
निद्रामांथी जागृत था अने तारू खरूं स्वरूप कयुं छे, ते ओळख. हे आत्मदेव, मारे तारा
दर्शन करवा माटे ज जैनधर्म–कुळमां जन्म थयो छे. अने कहान गुरु जेवा संत
जैनधर्मनो अने तेना मूळरूप सम्यग्दर्शननो राह बतावी रह्या छे. तुं सर्वगुणथी
परिपूर्ण आत्मा होवा छतां तारा अज्ञानथी तुच्छ ईन्द्रियसुखो पाछळ दोडी रत्नने
बाळी राख मेळवे छे.
नाविकरूपी कहान गुरु सम्यग्दर्शननी नाव लई तने संसाररूपी असार