: जेठ: २४९६ आत्मधर्म : ३९ :
आपे निबंध लख्यो होय ने आपनुं नाम न आव्युं होय तो अमने जणावो; अने जो आपनो
निबंध श्रेष्ठ होवानुं आपने लागतुं होय तो फरी लखी मोकलो. ता. ३० जुन सुधीमां ते स्वीकारीशुं. हवे
नवा निबंध न मोकलवा.
निबंधमां सौए उत्साहथी भाग लईने सुंदर भावो व्यक्त कर्या छे. आ निबंधोनो संग्रह
पुस्तकरूपे छपाववानी केटलाकनी मांगणी छे. जो छपाय तो आपने केटला पुस्तकोनी जरूर पडशे ते
जणावशो. किंमत अंदाज एक रूपियो थशे.
* * *
जैनोनी वस्ती केटली?
वीस लाख? ना, एनाथी वधु.
एक करोड?......ना, एनाथी वधु.
दश करोड?.....जी ना; एथी पण वधु.
तो शुं एक अबज? जी ना, हजी वधु.
तो शुं पांच अबज? हजी पण वधु.
जैनो तो असंख्य लागे छे?–बराबर!
* अढी द्वीप बहार असंख्याता सम्यग्द्रष्टि जीवो वसे छे, ते बधा जैनो छे.
* नरकमां तेमज स्वर्गमां असंख्यात सम्यग्द्रष्टि छे, तेओ बधा जैन छे.
* मनुष्योमां ९ करोड जेटला मुनिओ, ७ अबज सम्यग्द्रष्टिओ, आठ लाख
केवळी अरिहंत भगवंतो,–ए बधा पण जैन छे.
कहो जोईए, जैनोनी वसती केटली बधी छे!!
आवा जैन–धर्मात्माओ वडे जगतमां जैनधर्म सदा जयवंत छे.
प्रश्न:– पोताना आत्मामां पहेलां दोष जोवा के गुण?
उत्तर:– जो एकला दोष सामे जोया करे ने गुणने लक्षमां न ल्ये तो दोष टळी
शके नहीं; तेमज गुणनुं स्वरूप जाण्या वगर सूक्ष्म दोषोने पकडी शकाय नहीं. ज्यां
पोताना आत्माना वीतरागी गुणोने ओळखे त्यां तेनाथी विरुद्ध एवा दोषनुं स्वरूप
पण जीवने ख्यालमां आवी ज जाय छे, अने निजगुणनी रुचि वडे ते जीव दोषने
टाळतो जाय छे. आ रीते गुणनी मुख्यतापूर्वक दोषनुं ज्ञान पण साथे थई जाय छे.
गुणनी अस्ति जाणी त्यां दोषनी तेमां नास्ति जाणी–एम अनेकांत छे. जेणे निजगुणने
जाण्या छे ते जीव क्रोधादि दोषना एक अंशने पण निजस्वरूपमां मानतो नथी,
शुद्धस्वरूपथी तेने भिन्न जाणीने, तेनुं अकर्तापणुं प्रगट करीने, तेओ अभाव करे छे ने
गुणने प्रगट करे छे.–आवो जिनमार्ग छे.