: ४० : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
वैराग्यप्रेरक उत्तम लेख
[ले: सौ. पुष्पाबेन एम. दोशी घाटकोपर]
आत्मधर्मनी निबंधयोजनामां विद्यार्थीओ उपरांत बीजा
अनेक जिज्ञासुओए पण भाग लीधो छे. एवा एक जिज्ञासु बेननो
आ वैराग्यरसभीनो लेख छे. संसारना गमे तेवा प्रसंगमां पण
आपणा मुमुक्षुओनी विचारधारा केवी ऊंची होय छे? ने वैराग्य
शरूआतमां तेओ लखे छे के आत्मधर्म अंक ३१६ मां निबंध माटे जे सात
विषयो आप्या छे ते एकदम सरस छे, तेमांथी त्रीजो विषय पसंद करीने हुं आ
वैराग्यप्रेरक लेख लखुं छुं.
जीवने वैराग्य तरफ वळवाना तो अनेक प्रसंगो बने छे, परंतु ज्यारे निकटमां
निकटना सगानुं अवसान थाय छे त्यारे ते करुण प्रसंग अत्यंत वैराग्यनुं कारण बने
छे; चारे बाजुथी वृत्ति ऊठी जाय छे, अने क्यां शांति तथा समाधान मळे ए शोधवा
माटे जीव दिनरात झंखे छे. आवी परिस्थितिमां जो धर्मनुं शरणुं होय तो ज समाधान
मेळवी शकाय छे, ए सिवाय बीजो एकेय रस्तो नथी.
आ संसारमां जे जन्म्युं छे ते जरूर एक दिवस जवानुं ज छे. जे संयोग छे ते
वियोग लईने ज आव्यो छे. आ देहनी स्थिति मर्यादित छे, ते कांई कायम रहेनार
नथी. देह तो विनाशी छे; अविनाशी तो आतमराम छे. मोटा ने नाना, वृद्ध के युवान
बधाने एक दिवस तो देह छोडीने बीजे जवानुं ज छे.–ए तो संसारी जीवनो क्रम छे
छतां मनुष्य संसारनी मायाजाळमां एटलो बधो सपडाई गयो होय छे–भोगविलासना
रंगमां एवो रंगाई गयो होय छे के ते आत्माना कल्याणने भूलीने बहारना ऐहिक
सुखमां अटवाया करे छे. देहमंदिरमां रहेला पोताना देवने भूली, बाह्यमां आ जडना
ढींगलाना देखावमां ने तेनी सजावटमां रच्यो–पच्यो रहे छे; परिणामे देहनी नश्वरता
अने आत्मानी अमरतानोय तेने ख्याल रहेतो नथी, देह पाछळ जीवन नकामुं चाल्युं
जाय छे. अरे, देहादि संयोगनी नश्वरताने कोण नथी जाणतुं? ए तो गमे ते घडीए
छूटी जशे. छूटुं छे एटले छूटु पडे छे. तद्न साजोनरवो मानवी बीजी ज क्षणे
अकस्मातनो भोग बनतो देखाय छे. तो कोई हृदयरोगना हुमलानो भोग बने छे;
करोडपतिनो जुवानजोध