Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९६ आत्मधर्म : ४३ :
कुंडला शहेरना प्रवचनोमांथी
(गतांकमां बाकी रहेलो भाग)
आत्मा चैतन्य–हंसलो छे. जेम हंस दूध अने पाणीने जुदा पाडीने दूधने ग्रहण
करे छे; तेम ज्ञान अने राग ए बंनेनी भिन्नतानुं ज्ञान करीने धर्मी जीव चैतन्यहंसलो
रागादिने छोडे छे ने निर्मळ ज्ञानआनंदनुं वेदन करे छे.
आत्मा निजस्वरूपने भूलीने मिथ्यात्व अने राग–द्वेषना भावथी संसारमां
चारगतिनां दुःख भोगवी रह्यो छे. ते दुःखथी आत्मा केम छूटे?–तेनुं जेने रटण होय
एवा जीवने प्रश्न ऊठे छे के प्रभो! आ आत्मा दुःखदायी आस्रवोथी केम छूटे?
तेने आत्मानुं परमार्थस्वरूप समजावे छे. प्रथम राग–मिश्रित भूमिकामां
‘ज्ञानवडे’ आत्मानुं स्वरूप नक्की करे छे. ज्ञानने एकदम अंतर्मुख करवा जतां, प्रथम ते
तरफनो विकल्प रहे छे; पण त्यां जे विकल्प छे ते विकल्प कांई आत्माना अनुभवनुं
कारण नथी. विकल्पथी भिन्न थईने ज्ञानने अंतर्मुख करे त्यारे ज आत्मानो अनुभव
थई शके तेम छे; अपूर्व छे छतां अशक्य नथी. परवस्तुने पोतानी मानवा छतां तेने
पोतानी करवी ते तो अशक्य छे, राग वडे मोक्ष के धर्म थई शके नहीं. आत्मानुं रागथी
भिन्न स्वरूप अनुभवमां लेवुं ते दुर्लभ होवा छतां जीवथी थई शके तेवुं छे. अनंता
जीवो एवो अनुभव करी करीने मोक्ष पाम्या छे. अने एवो अनुभव करवानी आ रीत
कहेवाय छे.
आत्मा ज्ञानदर्शनथी ज समग्र–परिपूर्ण छे, तेमां कोई विकल्पना प्रवेशनो
अवकाश नथी. चेतनानी निर्मळ अनुभूतिस्वरूप आत्मा छे, तेमां हुं कर्ता, निर्मळ
पर्याय ते कार्य ईत्यादि कारकभेदना विकल्प नथी. विज्ञानघन आत्मा विकल्पगम्य थतो
नथी. चैतन्यनिधाननी प्राप्ति तो अंतर्मुख उपयोगथी थाय छे, ईन्द्रियो तरफना बाह्य
वलणथी चैतन्य निधान पमाता नथी.
विकल्प केम अटके? के आत्मा अने रागनी, भिन्नता जाणीने ज्ञानमां उपयोग
एकाग्र थयो त्यां रागथी निवृत्ति थई, विकल्पोथी भिन्नता थई, ज्ञान ज्ञानमां ज
पोतापणे प्रवर्त्युं एटले सम्यग्दर्शन थयुं ने मोक्षमार्गरूप धर्म शरू थयो.
ज्ञानदर्शनमय आखो स्वभाव होय तेमां रागनो खंड केम होय? राग होय त्यां
अखंड ज्ञान न रहे. धर्मी तो पोताने रागथी जुदो अखंड ज्ञानरूप अनुभवे छे. आवा
अनुभव वडे ज क्रोधादि अज्ञानमय भावोनो क्षय थाय छे. *