Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९६
जेम संसारी गृहस्थो रसोई बनावे छे ने जमे छे, तेम योगीओ पण एक सरस
रसोई बनावे छे ने जमे छे.....फेर एटलो छे के गृहस्थोनी रसोई पौद्गलिक रसोई छे
ने तेनो उपभोग पण संसारनुं कारण छे; त्यारे योगीनी रसोई ए तो आत्मिक रसोई
छे, ए रसोई अतीन्द्रियरसथी भरेली छे...अने ए रसोईनो उपभोग ते मोक्षनुं कारण
छे. आवी आनंदरसथी भरपूर रसोई जेओ स्वयं बनावे छे ने स्वयं तेने खाय छे...
खातां खातां मोक्षमां जाय छे, एवा योगीमुनिवरोनी एक सुंदर स्तुति कवि
नैनसुखदासजीए बनावेली छे, जे अहीं आपी छे.
आ स्तुति सं. २०१२ मां शिखरजीनी यात्राए जतां मेरठमां कलाकार श्री
ताराचंदजी प्रेमीना मधुर कंठे सांभळवा मळेली, ने खूब गमेली; फरीने गत वैशाख
मासमां ताराचंदजी प्रेमी सोनगढ आव्या त्यारे तेमणे आ गीत संभळाव्युं...गुरुदेव
सहित सौने गम्युं...ते अहीं रजु थाय छे. संगीतकार श्री ताराचंद्रजी प्रेमी जैन एक
राष्ट्रगायक छे; एकवार स्व. वडाप्रधान पं. जवाहरलाल नहेरु पण तेमनुं संगीत
सांभळी मुग्ध बन्या हता, ने तेमनी प्रशंसा तथा सन्मान कर्युं हतुं.
एक योगी अशन बनावे...तसु भखत ही पाप नसावे.......एक योगी०
ज्ञानसुधारस जल भर लावे, चोका शिल लगावे;
कर्मकाष्टको चुग चुग बाळे, ध्यान–अग्नि प्रजलावे........एक योगी०
अनुभव–भाजन निजगुण तंदुल, समता क्षीर मिलावे,
सोहं मिष्ट निःशंकित व्यंजन, समकित झोंक लगावे....एक योगी०
स्याद्वाद सप्त भंग मसाले, गिनती पार न पावे,
निश्चयनयको चमचा फेरे, बारह भावना भावे......एक योगी०
आप बतावे आप ही खावे, खावत नाहीं अधावे,
तदपि मुक्ति पंथ जु सेवत, नैनानंद शिर नांवे......एक योगी०
अर्थ माटे सामे पाने जुओ–