Atmadharma magazine - Ank 321
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : अषाड : २४९६
(९) सर्वज्ञतानी प्रतीतिना अभावे आत्मा पोताना ज्ञानस्वभावने भूलीने,
रागादि विभावनो ज कर्ता थईने संसारमां रखडे छे.
(१०) आ रीते प्रतीतिना प्रतापे परमात्मा थवाय छे.
अने प्रतीतिना अभावे परिभ्रमण थाय छे.
माटे हे जीवो! सर्वज्ञस्वभावी आत्मानी प्रतीति करो...ने तेनो अचिंत्यमहिमा
जाणीने तेमां ठरो.....एम श्री सन्तोनो उपदेश छे.
*
एकवार एक मुमुक्षु जीवने विचार आव्यो के अरे, आ
संसारमां अनादिथी हुं दुःखी छुं, ते दुःख टाळीने आत्मानुं हित
अने सुख मारे प्राप्त करवुं छे. ते हित कई रीते थाय?
आम विचारीने ते जीव वनमां गयो, वनमां घणा
मुनिवरो आत्माना ध्यानमां बिराजता हता. तेओ अत्यंत शांत
हता. अहा! एमनी शांत मुद्रा मोक्षनो मार्ग ज देखाडती हती.
मुमुक्षु जीवे तेमने वंदन करीने घणा ज विनयपूर्वक पूछ्युं–
प्रभो! आत्माना हितनो उपाय शुं छे? मोक्षनो मार्ग शुं छे?
आचार्य महाराजे कृपापूर्वक कह्युं: हे भव्य!
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्राणि मोक्षमार्गः।
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे.
मुनिराजना श्रीमुखथी आवो मोक्षमार्ग सांभळीने ते
मुमुक्षु घणो खुशी थयो, ने भक्तिपूर्वक ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनी आराधना करवा माटे तैयार थयो.
बंधुओ! आपणे पण ते मुमुक्षुनी जेम मोक्षमार्गने
ओळखवो जोईए, ने तेनी आराधना करवी जोईए.