Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
आवा हाल देखीने नगरजनो कहेवा लाग्या के जुओ आ पापी जीव एनां पापनुं फळ
भोगवी रह्यो छे, माटे पापथी दूर रहो.
राजाए कमठने काढी मूक्यो तेथी ते घणो दुःखी थयो अने तापसी लोकोना
मठमां जई बावो थईने रहेवा लाग्यो, तथा कुगुरुओनी सेवा करवा लाग्यो. त्यां कोईने
लांबी जटा हती, तो कोईए शरीरे राख लगावी हती, कोई मृगचर्म उपर बेठा हता तो
कोई पंचाग्नि तपता हता; कमठ आवा कुगुरुओ साथे रहेवा लाग्यो; एने कांई ज्ञान तो
हतुं नहीं, वैराग्य पण न हतो. अज्ञानथी अने क्रोधथी हाथमां मोटो पथरो उपाडीने, ते
ऊभो ऊभो तप करतो हतो. एवामां–शुं बन्युं?.......ते जाणता पहेलां आपणे तेना
भाई मरूभूतिनी तपास करी लईए.
* *
लडाईमां गयेलो मरूभूति ज्यारे पाछो आव्यो, अने पोताना मोटा भाई
कमठना दुराचारनी वात जाणी, तथा राजाए तेने काढी मुक्यानी खबर पडी, त्यारे तेने
घणुं दुःख थयुं. भाई उपर तेणे क्रोध न कर्यो पण ऊलटुं तेने मळवानुं अने घरे पाछो
लाववानुं मन थयुं. एटले ते राजा पासे आव्यो अने कह्युं के हे महाराज! मारा
भाईनो अपराध क्षमा करो अने तेने राज्यमां पाछो लाववानी रजा आपो.
राजाए कह्युं: भाई! तुं घणो सज्जन छो पण कमठ दुष्ट छे, एक ज घरमां
अमृत अने झेरनो संगम थयो छे. कमठ तारो भाई छे पण तेणे जे खराब अने
अन्यायी कार्य कर्युं छे तेनी शिक्षा करवी ज जोईए, तेमां ज राज्यनी शोभा छे, माटे तुं
कांई चिंता न कर अने घरे जा.
घरे आवीने पण मरूभूतिने पोताना भाई वगर चेन पड्युं नहीं; एटले ते
तेना भाईने मळवा माटे जवा लाग्यो. राजाए तेनी पासे न जवा माटे तेने घणुं
समजाव्यो, पण तेणे मान्युं नहीं, ने मोटाभाईना मोहने वश तेनी तपास करवा, अने
तेनी क्षमा मांगवा माटे ते चाल्यो. रे...बंधुप्रेमनो मोह केवो छे! जीवोने मोहनुं बंधन
तोडवुं मुश्केल पडे छे.
मरूभूति पोताना भाईने शोधतां शोधतां ज्यां कमठ रहेतो हतो त्यां आवी
पहोंच्यो, अने पोताना भाईने बावो थईने आम खोटुं तप करतो देखीने तेने घणुं
दुःख थयुं. तेनी पासे जई, हाथ जोडीने ते कहेवा लाग्यो के हे भाई! तमारा वगर