भोगवी रह्यो छे, माटे पापथी दूर रहो.
लांबी जटा हती, तो कोईए शरीरे राख लगावी हती, कोई मृगचर्म उपर बेठा हता तो
कोई पंचाग्नि तपता हता; कमठ आवा कुगुरुओ साथे रहेवा लाग्यो; एने कांई ज्ञान तो
हतुं नहीं, वैराग्य पण न हतो. अज्ञानथी अने क्रोधथी हाथमां मोटो पथरो उपाडीने, ते
ऊभो ऊभो तप करतो हतो. एवामां–शुं बन्युं?.......ते जाणता पहेलां आपणे तेना
भाई मरूभूतिनी तपास करी लईए.
घणुं दुःख थयुं. भाई उपर तेणे क्रोध न कर्यो पण ऊलटुं तेने मळवानुं अने घरे पाछो
लाववानुं मन थयुं. एटले ते राजा पासे आव्यो अने कह्युं के हे महाराज! मारा
भाईनो अपराध क्षमा करो अने तेने राज्यमां पाछो लाववानी रजा आपो.
अन्यायी कार्य कर्युं छे तेनी शिक्षा करवी ज जोईए, तेमां ज राज्यनी शोभा छे, माटे तुं
कांई चिंता न कर अने घरे जा.
समजाव्यो, पण तेणे मान्युं नहीं, ने मोटाभाईना मोहने वश तेनी तपास करवा, अने
तेनी क्षमा मांगवा माटे ते चाल्यो. रे...बंधुप्रेमनो मोह केवो छे! जीवोने मोहनुं बंधन
तोडवुं मुश्केल पडे छे.
दुःख थयुं. तेनी पासे जई, हाथ जोडीने ते कहेवा लाग्यो के हे भाई! तमारा वगर