मुनि पासे दीक्षा लई लीधी. राजाए तेना पुत्रने मंत्री बनाव्यो. कमठ दुष्ट होवाथी तेने
मंत्री न बनाव्यो, पण मरूभूतिने मंत्री बनाव्यो. पोते मोटो छतां पोताने मंत्रीपद न
मळ्युं ने नानाभाईने मंत्रीपद मळ्युं तेथी कमठना मनमां घणी ईर्षा थती हती.
जाणे राजा होय तेम वर्तवा लाग्यो, ने प्रजाने हेरान करवा लाग्यो. मरूभूतिनी स्त्री
घणी सुंदर हती, तेने देखीने कमठ तेना उपर मोहित थई गयो. अरेरे, पोताना
नानाभाईनी स्त्री उपर ते मोहित थयो! पापी जीवने विवेक क्यांथी होय? नाना
भाईनी स्त्री ते तो पुत्री समान गणाय, छतां विषयांध जीव तेना उपर पण कुद्रष्टि
करवा लाग्यो. धिक्कार छे एवा विषयोने! तेथी ज शास्त्रो कहे छे के रे जीव! विष जेवा
विषयोने तुं दूरथी ज छोड.
माटे घणुं समजाव्यो; आवां पापकार्योथी जीव नरकमां जाय छे, अहीं पण तेनी निंदा
थाय छे, माटे हे मित्र! तुं मारी शिखामण मान, अने आवा दुष्ट विचारने छोडी दे!
परंतु पापी कमठे तेनी एक पण शिखामण न मानी; अने कह्युं के जो सुंदर स्त्री मने
नहि मळे तो हुं मरी जईश.
कमठना दुराचारनी वात तेणे सांभळी अने कमठ उपर तेने घणो गुस्सो आव्यो. आवा
अन्यायी माणस मारा राज्यमां शोभे नहीं, एम विचारीने तेने कडक शिक्षा करी; तेने
टको करावी, मोढुं काळुं करी, गधेडा उपर बेसाडीने नगर बहार काढी मुक्यो. पापी
कमठना