: २८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
भगवान पारसनाथ
[१]
–बे भाई: मरूभूति
अने कमठ–
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वहाला बंधुओ, आजे आपणा त्रेवीसमा तीर्थंकर पारसनाथ भगवाननी कथा
तमने कहुं छुं. तेमणे केवी क्षमा राखी अने हाथीना भवमां आत्माने ओळखीने तेओ
केवी रीते भगवान थया, ते जाणीने तमने आनंद थशे, अने तमने पण तेम करवानुं
मन थशे.
आपणा आ जंबुद्वीपनी वच्चे मोटो मेरु पर्वत छे; तेनी दक्षिण दिशामां
भरतक्षेत्र छे. घणा घणा वर्षो पहेलां त्यां पोदनपुरमां एक राजा हतो, तेनुं नाम
अरविंद.
अरविंद राजा जैनधर्मनो भक्त हतो. तेना राज्यमां सुंदर अने ऊंचा
जिनमंदिरो हता. अनेक मुनिवरो ने धर्मात्माओथी तेनुं नगर शोभतुं हतुं.
ते राजाना मंत्रीने बे पुत्रो हता–एकनुं नाम कमठ, अने बीजानुं नाम मरूभूति.
कमठ मोटो ने मरूभूति नानो; आ मरूभूति ते ज आपणा पारसनाथनो जीव!
कमठ अने मरूभूति बंने सगा भाई हता, छतां कमठ क्रोधी अने दुराचारी हतो,
मरूभूति शांत अने सरल हतो. जेम एक ज लोढामांथी तलवार पण बने छे ने बख्तर
पण बने छे, तलवार कापे छे, बख्तर बचावे छे; तेम एक ज माताना बे पुत्रो, तेमां
एक कपुत छे ने एक सपुत छे. क्रोधी कमठ सदा दोष देखे छे ने मरूभूति विनयथी
सद्गुण जुए छे. वहाला पाठक! आगळ जतां तने ख्याल आवशे के क्रोधथी जीवनुं
केटलुं बुरुं थाय छे! ने सद्गुणथी जीव केवो सुखी थाय छे!
हवे मंत्रीना बंने पुत्रो साथे रमे छे, साथे भणे छे; एम करतां करतां बंने पुत्रो
युवान थया, ने बंनेना लग्न पण थई गया. तेओ ब्राह्मण हता, हजी तेमने जैनधर्मना
संस्कार मळ्या न हता, तेम ज आत्मानी ओळखाण थई न हती.