Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : २७ :
आत्मा पण पोताना ध्रुव–चिदानंद स्वभावने लक्षमां लईने तेना आनंदनुं
वेदन करे छे. तेना वेदनमां रागादिना वेदननो अभाव छे. अज्ञानदशामां
पर्यायने परभावमां एकाग्र करीने दुःखनुं वेदन करतो, हवे पर्यायने स्वभावमां
एकाग्र करीने आनंदनुं वेदन करे छे.
* पुण्य–पाप राग–द्वेष ते तो क्षणिक दोष छे. आखो आत्मा कांई तेवो नथी,
आत्मानो स्वभाव रागादि परभाव वगरनो, ज्ञानानंदे परिपूर्ण छे. ते
स्वभावने देखनार धर्मीजीव पुण्यने पण अशुचीरूप समजीने तेने ईच्छता
नथी, ते तो ज्ञानरूप ज परिणमे छे, ज्ञानपरिणतिमां राग केवो? ज्ञानपरिणति
क्यांथी आवे? ज्यां ज्ञान होय त्यां एकाग्रताथी ज्ञानपरिणति आवे, पण कांई
रागमांथी ज्ञानपरिणति न आवे. स्वभावद्रष्टिमां एकाग्र थयो त्यां निर्मळ
ज्ञानपरिणतिरूपे परिणम्या ज करे एवो आत्मानो स्वभाव छे. आवा
आत्मानी द्रष्टिवाळा धर्मीजीव कर्मनी निर्जरा वगेरे दशाओने जाणे ज छे, पण
तेने करता नथी; तेना अकर्तारूप एवा सहज ज्ञानभावरूपे ज रहे छे. आवी
शुद्धज्ञानपरिणतिनुं नाम धर्म छे.
* ध्रुवस्वभावना आश्रये पर्यायमां जे प्रयत्न थयो ने शुद्धतानी वृद्धि थई ते तप
छे ने ते भावनिर्जरा छे. परंतु, आवी निर्जरापर्यायने हुं करुं एम पर्यायसन्मुख
द्रष्टिथी निर्जरा नथी थती; पर्याय अंतरमां एकाग्र थई त्यां स्वभावना आश्रये
शुद्धपरिणति वर्ते ज छे. ते शुद्धपरिणतिमां रागादि भावोनुं कर्ता–भोक्तापणुं
नथी, ने ते ज मोक्षनो उपाय छे.
* * * * *
पामर नहीं–पण–परमात्मा
जे पोताने पामर, राग–क्रोधादि दोषरूप ज मानीने प्रभुता
(मोक्ष) लेवा मांगे छे तेने ते मळशे नहीं. पोताने पामर ज मानीने
प्रभुता क्यांथी लावशे?
पामरता वगरनो, एटले क्रोध–रागादि दोषोथी जुदो, अनंतगुणना
परम स्वभावथी भरेलो परमात्मा हुं छुं–एम पोताने अनुभवनार जीव
दोषने दूर करीने परमात्मा थाय छे. ‘हुं ज सच्चिदानंद परमात्मा छुं’ एम