कर्ता–भोक्ता नथी. शुद्ध ज्ञानपरिणतिमां रागना अकर्तापणानी अपेक्षाए
क्षायिकज्ञानी ने श्रुतज्ञानी बंने सरखां छे.
तेनुं वांचन–मनन करता. तेमां कह्युं छे के आ आत्मामां ने सिद्धपरमात्मामां
किंचित् पण फेर नथी. स्वभावथी आ आत्मामां ने सिद्धपरमात्मामां कांई फेर माने
तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. जेम स्वभावथी बंने सरखां छे, तेम ते स्वभावनी द्रष्टिमां जे
रागादिनुं अकर्तापणुं थयुं तेमां पण बंने सरखां छे. जेम क्षायिकज्ञानी एवा केवळी
परमात्माना ज्ञानमां रागादिनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी, तेम स्वभावद्रष्टिवंत साधक
धर्मात्मानी शुद्धज्ञानपरिणतिमां पण रागादिनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी. स्वभावद्रष्टि
थतां धारावाही शुद्धज्ञानपरिणति थया करे छे, त्यां ‘आ परिणतिने हुं करुं’ एवा
विकल्पनोय ते परिणतिमां अभाव छे. अहो! पूर्णानंदी ध्रुवस्वभावनी द्रष्टिथी
आवी परिणतिरूपे आत्मा परिणम्यो–तेनुं नाम धर्म छे.
आत्मा पर्यायमां पामर छतां स्वभावे प्रभु छे–ते प्रभुता संतो बतावे छे. जेम
माता हेतथी हालरडां गाईने बाळकनां वखाण करे, तेम संतो आत्मगुणना
गाणां संभळावीने जगाडे छे के रे जीव! तुं जाग! राग जेटलो तुं नथी, ने तारुं
ज्ञान रागनुं कर्ता नथी. तुं तो पूर्णानंदनो नाथ छो, ने स्वभावमां एकाग्र थईने
परमात्मा थवानी तारी ताकात छे.
ज्यां द्रष्टिने एकाग्र करी त्यां जीवनी मोहनिद्रा ऊडी गई ने ते जाग्यो के अहो!
जेवा परमात्मा तेवो हुं छुं. परमात्मामां ने मारामां कांई फेर नथी. पर्याय भले
छोटी–पण स्वभाव तो मोटो छे, स्वभाव छोटो नथी. आवा मोटा स्वभावने
प्रतीतमां लेतां रागादिना कर्तापणारूप तूच्छता छूटी जाय छे ने शुद्ध
ज्ञानभावरूप मोटुं परमात्मपणुं प्रगटे छे. जेम अणुबोंब (जापान उपर फेंकायो
ते) देखावमां नानो होय पण तेनी शक्ति एटली मोटी होय के सेंकडो जोजनमां
खेदान–मेदान करी नांखे! तेम आत्मा क्षेत्रथी देखावमां भले नानो लागे पण
अंदर परमात्मशक्तिनो मोटो भंडार छे, ने तेनी द्रष्टि–अनुभव ते करी शके छे.
नाना देहमां रहेला देडकानो