Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
प्रश्न:– सोनगढमां प्रवचनमां समयसार–परमागम ज वंचाय छे ने बीजा कोई शास्त्र
नथी वंचाता–ए वात खरी छे?
उत्तर:– समयसार–परमागमनी हंमेशा मुख्यता होय छे ए खरुं, परंतु समयसार
उपरांत षट्खंडागम (भाग–१) वगेरे बीजा पचास जेटला वीतरागी शास्त्रो
पण सोनगढमां प्रवचनमां वंचाई चूकया छे.
* * *
मुंझवणमांथी मार्ग
* राजकोटना एक मुंझायेल मुमुक्षुए मार्गदर्शन माग्युं छे;–तेमने एटलुं ज
जणाववानुं के, हे जीव! वर्तमान जे कांई परिस्थिति बहारमां ऊभी थाय छे ते,
तारा पूर्वना ते–ते प्रकारना भावने सूचवे छे. तेवा भाव अत्यारे न सेववा.
पूर्वे विराधना–भावे जे कर्मो बंधाया ते अत्यारे प्रतिकूळतारूपे देखाय छे; तेमां
शांति माटे एक ज सर्वोत्तम उपाय श्री ज्ञानीओ बतावे छे के, ते बधा कर्मोथी
भिन्न एवा ज्ञानने लक्षमां लईने तेनी भावना कर. ज्ञाननी भावना वडे
बहारनी गमे तेवी परिस्थितिमां पण शांति मळी शकशे ने मुंझवणनो उकेल
थईने आत्महितनो मार्ग मळी आवशे. आवी ज्ञानभावनाथी ऊंचो बीजो कोई
ज उपाय नथी. बाकी तो साधर्मीओने पोताना दुःखी साधर्मी पर सर्व प्रकारे
सहानुभूति होय छे.
* * *
सुखी मुनिवरा
आ संसारमां मात्र ते मुनिओ ज परम सुखी छे के जेओ सर्व प्रकारनी
चिन्ताने छोडीने ध्यान वडे आत्मिक सुखने अनुभवी रह्या छे. जगतमां ते मुनिराज
धन्य छे के जेओ आत्माना अंतर सरोवरमांथी ध्यानरूपी अंजलि भरीभरीने उत्तम
आनंदामृतने सदा पीए छे.
* * *
दसलक्षणीधर्मनी आराधनानुं महान पर्व (पर्युषण) भादरवा सुद (प्रथम)
पांचम ने शनिवार ता. प–९–७० थी प्रारंभ थशे.