
पण सोनगढमां प्रवचनमां वंचाई चूकया छे.
जणाववानुं के, हे जीव! वर्तमान जे कांई परिस्थिति बहारमां ऊभी थाय छे ते,
तारा पूर्वना ते–ते प्रकारना भावने सूचवे छे. तेवा भाव अत्यारे न सेववा.
पूर्वे विराधना–भावे जे कर्मो बंधाया ते अत्यारे प्रतिकूळतारूपे देखाय छे; तेमां
शांति माटे एक ज सर्वोत्तम उपाय श्री ज्ञानीओ बतावे छे के, ते बधा कर्मोथी
भिन्न एवा ज्ञानने लक्षमां लईने तेनी भावना कर. ज्ञाननी भावना वडे
बहारनी गमे तेवी परिस्थितिमां पण शांति मळी शकशे ने मुंझवणनो उकेल
थईने आत्महितनो मार्ग मळी आवशे. आवी ज्ञानभावनाथी ऊंचो बीजो कोई
ज उपाय नथी. बाकी तो साधर्मीओने पोताना दुःखी साधर्मी पर सर्व प्रकारे
सहानुभूति होय छे.
धन्य छे के जेओ आत्माना अंतर सरोवरमांथी ध्यानरूपी अंजलि भरीभरीने उत्तम
आनंदामृतने सदा पीए छे.