: श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : ३७ :
वीसमी सदीका श्रेष्ठ साहित्य.......... ‘पहले कौन पढें?’
खंडवाना एक मुमुक्षुभाई–जेओ शिक्षक छे अने जेमनुं नाम श्रीमंधर जैन छे,
तेओ प्रसन्नतापूर्वक लखे छे के “आज गुजराती–बालपोथी भाग २ की प्रति मिली,,
पढकर हृदयमें बहुत ही हर्ष हुआ कि आज वीसवीं सदीमें जब कि संसार भौतिकवादी
होने जा रहा है वहां हमारे ऐसे भी लेखक हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन अध्यात्मके
संस्कारकें सींचनमें लगा दिया। गुरुदेवके चरनोंमें जिन्होंने अपने जीवनको सफल करने
के साथ ही साथ ऐसे सुंदर एवं हृदयको स्पर्श करानेवाले साहित्यका सृजन किया
जिससे हमको भी आत्माकी लगनी लगी है. वास्तवमें बालपोथीमें जो भी संवाद हैं वे
मात्र बालकोंके नहीं लेकिन उनके मातापिताओंके भी संस्कारोको बनायेगी। प्रश्न–उत्तरके
माध्यमसे जिन भावोंको रखा है वे सीधे हृदयको स्पर्श करते हैं कि अहो, हमारी
आत्मामें भी ऐसा पंच परमेष्ठी पद पडा है। संसारमें यहीं मंगल, उत्तम और शरण
है। सदियोंसे नमस्कारमंत्र बोलते हैं लेकिन आज तक भी भाव पकडमें नहीं आया.
हम तो ऐसा साहित्य पाकर धन्य हो गये. हमारे घरमें तो जैसे ही सोनगढका साहित्य
आता है–धूम मच जाती है कि पहले कौन पढे? आपने जो लेखनके माध्यमसे
जनजीवनमें अध्यात्मके संस्कारोंको पुष्ट किया है, मैं समजता हूं ईतना बडा पुण्य आज
करोडों रूपया दान भी देने में नहीं है।”
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आ ध्रुवद्रव्य ने आ पर्याय, एम ओघेओघे शास्त्रथी तो घणा जाणे छे, शास्त्र
भणीने अज्ञानी पण एटली धारणा तो करी ल्ये छे; पण पर्यायने अंतरमां वाळीने
ध्रुवमां प्रसारीने प्रतीत ने अनुभव करे त्यारे साचुं कहेवाय. त्यारे सम्यग्दर्शन ने
सम्यग्ज्ञान थाय. –आवो गंभीर सूक्ष्म अंतरनो वीतराग मार्ग छे.
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जेटला अनंतानंत अविभागप्रतिच्छेद एक केवळज्ञानपर्यायना छे, तेटला ज
अनंतानंत अविभागप्रतिच्छेद ज्ञानगुणना छे. जे गुणनी पूर्ण पर्यायना जेटला
अविभागप्रतिच्छेद छे तेटला ज अविभागप्रतिच्छेद ते गुणनी शक्तिना छे.