वस्तु नथी, स्वमां पर नथी, तेम सुखस्वरूप आत्मामां दुःखनुं वेदन नथी. आत्माना
सुखस्वभावथी दुःखभाव जुदो छे.
वेदनरूप थयो नथी. नरकमां बहारना संयोगथी जुओ तो घडी पण शांति नथी, पण
स्वभावथी जुओ तो त्यां त्रिकाळी शांतिनो भंडार आत्मामां भर्यो छे. तेनी द्रष्टिथी त्यां
पण सम्यक्त्व पमाय छे ने अपूर्व शांति वेदाय छे. दुःख तो उदयभाव छे,
पारिणामिकभावमां शांतिनो अखूट भंडार छे, तेमां जराय दुःख नथी. आवा मारा
स्वभावमां सर्वज्ञता ने पूर्णानंद भरपूर छे–एम ज्यां स्वतत्त्व प्रतीतमां लीधुं त्यां
सर्वज्ञतानुं साधन शरू थयुं. हवे अल्पकाळमां ज सर्वज्ञता प्रगट थशे, थशे ने थशे. आनुं
नाम अमृत छे, मोक्षना मार्गने अमृतमार्ग कह्यो छे; एटले संसारना कारणरूप रागादि
भावो ते झेर छे.
शुभराग वगेरे एकांत अशुद्ध छे, तेनो अनुभव मोक्षनुं कारण नथी.
अफरगामी छे. एकवार अंदरथी स्वभावनुं जोर लाव......पोतानो भरोसो कर. तारामां
पामरता नथी, तारामां प्रभुता छे; ते प्रभुतानो विश्वास करीने अंतरमां अनुभव कर.
‘न थई शके’ ए भाव छोडी दे. पोताना ज अस्तित्वनी प्रतीत पोताने न थाय ए केवी
वात! ताराथी थई शके तेवी आ वात छे. तारा जेवा अनंता जीवो जे करीने मोक्ष
पाम्या, ते ज आ वात छे, ने ताराथी थई शके तेवी छे. ते माटे अंदर पात्र थईने
प्रयत्न करवो जोईए. एक क्षणमां अंदर ऊतरीने अनुभव थई शके एवी वस्तु छे.