Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 37 of 44

background image
: श्रावण : २४९६ आत्मधर्म : ३प :
शुद्धात्मरस पाथरतुं एकमेव मासिक
आत्मधर्मनो एक दीवाळी–अंक देखीने, उल्लासनगर–थाणा (महाराष्ट्र) ना
एक मुमुक्षु भाई, जेमने गुजराती भाषा मांड–मांड आवडे छे तेओ घणा प्रमोदपूर्वक
लखे छे–मासिक हाथमां आवतां तेमां शुद्धात्मा देखाडयो, तेनो ज्ञान ने अनुभव
बताव्यो. एक लेखमां लख्युं छे–ते सिद्धपदने याद करतां, तेना जेवुं निजस्वरूप लक्षमां
लेतां, तेनी समीप जतां ने तेमां एकाग्र थतां...’ खरेखर आ वाक्यो सम्यक्त्वना
निर्माता छे ने भवथी छोडावनारा छे. आत्मधर्मनुं मुखपृष्ठ ज आत्मधर्म शुं छे तेनो
ख्याल आपे छे. पछी पानुं उल्टावतां उत्तम शिख आपी जे “गुरुराज दरशावे
जिनशासन मर्म; निजसुख अर्थे समजो आतम धर्म.” नीचेना लेखमां गुरु–शिष्यनुं
द्दैतपणुं न रहे एवी वात आवी छे. नीचेना पेरिग्राफमां आपणा जीवनकर्तव्यनो ख्याल
आप्यो छे. आत्मानुं महिमावंत स्वरूप समजाव्युं; जीवने महा भाग्यथी एवुं स्वरूप
सांभळवा मळे छे एम दर्शाव्युं छे. त्रीजा पेरिग्राफमां तो ‘जेम दूधपाकना तावडामां
झेरनुं टीपुं समाय नहीं तेम आनंदरसथी भरेला चैतन्यना मीठा दूधपाकमां रागरूपी
झेरनुं टीपुं पण भळी शके नहीं.’–एम वांचतां, हर्ष साथे ‘बोलो श्री सदगुरुदेवनो जय
होवो’ एवो जयघोष बहार आव्या विना रह्यो ज नथी. खरेखर ते गुरुदेव महंत छे,
तेमना योगे तो केवळज्ञानरूपी आनंदमय मंगल सुप्रभात उगशे ज!! अने ‘ज्ञानमय
सुप्रभात’ आ सुवर्णमय लेखमां आसोवद अमासनी वात वांचतां दिल केवो हर्षथी ने
समाधानथी गदगदी ऊठे छे! तद् पश्चात् मोक्षरूप ज थवुं गमे छे.
–आम हरएक लेखमां शुद्धात्म रस पाथरतुं आ उत्कृष्ट एकमेव मासिक मारा
भाग्यथी वांचवा मळ्‌युं. वहेलीतके बीजा मासिको मोकलजो.
(एस. एन. पवार, उल्लासनगर)
* * *
सुखथी भरेला स्वभावनी सरस चचार्
अखंड आत्माने तेना त्रिकाळ स्वभावरूपे जुओ तो ते ज्ञायकभावरूपे ज छे;
ज्ञाताभाव अने सुखथी पूर्ण आत्मा ज्यां प्रतीतमां आव्यो त्यां तेनी पर्यायना
प्रवाहमां पण केवळज्ञान अने पूर्ण सुख आवशे ज.
(चालु: पानुं ३६)