Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९६
समयसारने जाणतां ज्ञान अधिकुं थाय,
निजानंदनी मस्तीमां आतमसुख पमाय.
समयसार स्वसमय छे निश्चय आतमराम,
वैभव ए कुंदकुंदनो, करुं सदा प्रणाम. मन
मस्ती–आनंदमां भेदज्ञान जो थाय, ऊछळे
सागर सुखनो...ने पदवी सिद्ध पमाय.
प्रश्न:–
मुनि होना कि नहीं होना?
(एक हिंदी भाईए पूछयुं.)
उत्तर:– जरूर होना. मुनि थया वगर मोक्ष पामी
शकाय नहीं. माटे शुद्धोपयोगरूप मुनिपणुं जरूर
प्रगट करवुं. आवुं मुनिपणुं प्रगट करवा माटे
पहेलां शुद्धआत्माने ओळखीने अनुभवमां लेवो
जोईए. बाकी आत्माना ज्ञान वगर शुभ
रागथी मुनिपणुं मानी ल्ये ते कांई मुनिपणुं
नथी, ने तेमां आत्मानुं हित नथी.
प्रश्न:– आप तो मुनिको नहीं मानते–ऐसा लोग
कहते हैं?
उत्तर:– जेने आत्मानुं ज्ञान नथी, आत्मानो
अनुभव नथी, शुभरागने ज मोक्षनुं साधन
माने छे ने साचा वीतरागी तत्त्वनो विरोध करे
छे एवा कुगुरुओने अमे मुनि तरीके नथी
मानता, परंतु जे साचा मुनि छे. जे आत्माना
ज्ञान सहित शुद्धोपयोगी आनंददशामां झुले छे,
जे रत्नत्रयना धारक छे एवा संत–दिगंबर
गुरुओने अमे मुनि तरीके पूजीए छीए, तेमना
चरणोमां परम भक्तिथी नमस्कार करीए छीए;
ने एवी मुनिदशानी भावना भावीए छीए.
लोगोंको तो मुनिदशा कैसी है उसकी खबर ही
(बाल विभागना एक सभ्य (नं. १२६२
मोरबी) ‘मेरी आत्मझंखना’ नीचेना काव्यमां
बालभाषामां रजु करे छे...ने बालसभ्यो माटे
आत्मधर्ममां मोकले छे,–बीजा बाळको पण आवुं
लखाण मोकली शके छे.–सं.)
एक परम आतमा हूं मैं, यही मोक्ष मेरा,
आ रहा हुं पीछे तेरे, तूं ही ध्येय मेरा.....
छोड दी थी अबतक मैने, भावना ही सारी,
घूमता था पागल जैसा, बना नास्तिक भारी,
किन्तु तव–सु–संदेशने, दिया ज्ञान सारा,
एक परम आत्मा हूं मैं यही मोक्ष मेरा.....
भावना जो भीषण की है, पूर्ण वह करुंगा,
पूर्ण भावना को जीते जी, प्राप्त कर लूंगा,
परम आत्माको जानने का, है कार्य मेरा,
एक परम आतमा हूं मैं यही मोक्ष मेरा.....
श्रीगुरु भक्ति की है, फिर एक भावना भरी है,
शुद्ध ज्ञान–मंत्र रटन की, उर्मि हृदय जगी है,
हो जाउं ईसी से ही वीतरागी पूर्ण प्यारा,
एक परम आत्मा हूं मैं यही मोक्ष मेरा....
छूट जाय तन भले ही संयोग चाहे जो हो,
किन्तु, आत्मा मेरी, चलेगी ही मोक्ष पथ पर,
पीछे–पीछे आना तेरे, यही जैन धर्म मेरा...
एक परम आतमा हूं मैं...यही मोक्ष मेरा.
मुजे परभाव लगते असार, ये है झेरी संसार,
आत्मा के सीवा अन्य कोई, लगता नहीं है सार,
अन्य कोई बीन ना, चाहता हूं मैं जैनधर्म
मेरा आ रहा हूं पीछे तेरे, तूं ही ध्येय मेरा....