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पंचपरमेष्ठी भगवंतो अने सर्वे साधकधर्मात्माओ
वीतरागभावनी आराधनापूर्वक आपणने पण ए ज मार्ग
बतावीने परम उपकार करी रह्या छे....परमवत्सलताथी
तेओ आपणने क्रोध अने आत्मानुं पृथक्करण करावीने परम
क्षमाधर्मनी आराधना शीखवे छे.
आवा परम उपकारी सन्तोनो उपकार शब्दोमां
समाई शके नहीं; आत्माना असंख्यप्रदेश खोलीने तेमां
सन्तोए बतावेला वीतरागी क्षमाभावने भरी दईए ने
क्रोधना कोई अंशने तेमां रहेवा न दईए...आवी आराधना
एज साची उत्तमक्षमा छे. एक ज धर्मने साधनारा आपणे
सौ साधर्मीओ परस्पर परम प्रीतिथी आवी क्षमाना
आराधक बनीए.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९६ भादरवो (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २७ : अंक ११