उत्तम क्षमा ग्रहो रे भाई!
उत्तमक्षमादि दशधर्मनी परि–उपासना तेनुं नाम पर्युषण
१. पींडें दुष्ट अनेक, बांध–मार बहुविधि करें, धरिये क्षमा विवेक, कोप न कीजे जीयरा।
२. मान महा विषरूप, करे नीचगति जगतमें, कोमल सुधा अनूप, सुख पावे प्राणी सदा।
३. कपट न कीजे कोय, चोरनके पुर ना वसे, सरल सुभावी होय, ताके घर बहु संपदा।
४. कठिन वचन मत बोल, परनिंदा अरु जूठ तज, सांच जवाहर खोल, सत्वादी जगमें सुखी।
प. धारि हिरदे संतोष, करो तपस्या देहसों, शौच सदा निरदोष, धरम बडो संसारमें।
६. काय छहों प्रतिपाल, पंचेन्द्रिय मन वश करो, संयम रतन संभाळ, विषय चोर बहु फिरते हैं।
७. तप चाहे सुरराय, करमशिखरको वज्र है, द्वादशविधि सुखदाय, क्यों न करे निजशक्तिसम।
८. दान चार परकार, चार संघको दीजिये, धन बिजली उनहार नरभव लाहो लीजिये।
९. परिग्रह चोवीस भेद, त्याग करें मुनिराजजी, तृष्णा भाव उछेद, घटती जान घटाईए।
१०. शील वाड नौ राख, ब्रह्मभाव अंतर लखो, करि दोनों अभिलाष करो सफळ नरभव सदा।
दशलक्षणधर्मधारक रत्नत्रयवंत निर्ग्रंथगुरु मुनिभगवंतोने नमस्कार.