दीवाळी सुधीनुं वीर सं. २४९६
लवाजम भादरवो
चार रूपिया 1970 Sept.
* वर्ष २७: अंक ११ *
________________________________________________________________
आनंदपूर्वक क्षमाधर्मनी आराधना
(भादरवा सुद पांचमना प्रवचनमांथी)
आजे दशलक्षण धर्मनुं पर्व शरू थाय छे; पहेलो दिवस उत्तम क्षमानो छे.
उत्तमक्षमा क्यारे थाय? के जेणे पर्यायने अंतरमां वाळीने आनंदस्वरूप आत्मानो पत्तो
मेळव्यो छे, ते जीव ते आनंदधाममां रमणता करे, त्यारे बहारनी गमे तेवी
प्रतिकूळतामांय क्रोधभाव उत्पन्न न थाय,–आवी उत्तमक्षमा छे. चारित्रधर्ममां
उत्तमक्षमादि समाय छे. दशधर्मनी शरूआतमां कहे छे के–जे रत्नत्रययुक्त छे तथा नित्य
क्षमादि भावरूप परिणत छे अने सर्वत्र जेने मध्यस्थभाव छे एवा साधु ते पोते धर्म
छे.
क्रोध वगरनो शांत–शांत स्वभाव अनुभवमां आव्या वगर साची क्षमा प्रगटे
नहीं. आत्माना अनुभव उपरांत चारित्रमोहनो पण नाश करीने तेमां एवी लीनता
प्रगटे के–
बहु उपसर्ग कर्ता प्रत्ये पण क्रोध नहीं,
वंदे चक्री तथापि न मळे मान जो;
देह जाय पण माया थाय न रोममां,
लोभ नहीं छो प्रबळ सिद्धि निदान जो.
–आवी उत्तमक्षमामां आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद छे. आनंदपूर्वकनी आ
उत्तमक्षमा छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे. दश प्रकारनो जे धर्म छे ते आनंदथी भरपूर छे, ते
शुद्ध चेतनारूप छे. जे विकल्प ऊठे ते तो दुःख छे, ते कांई धर्म नथी. अहीं कहे छे के हे
जीव! आत्मानो आनंद जेमां छे एवा आ वीतराग दशधर्मोने तुं परम भक्तिथी जाण!
आवा धर्मने जाणीने परमभक्तिथी तेनी आराधना कर.