धर्मानुरागथी दश धर्मोने जाणवा अने आराधवा.
सुकुमारमुनि, सुकौशलमुनि, पांडवमुनिवरो, पारसनाथ मुनिराज वगेरेए पशु–मनुष्य
के देवकृत उपसर्ग सहन करीने क्षमाधर्मनी आराधना करी छे.
प्रतिकूळता करनार जगतमां कोई छे नहीं’–आम आनंदमां रहेतां खेदनी उत्पत्ति ज
थती नथी. क्रोध वडे कोई जीव कदाच शरीरने घाते, पण मारा क्षमाधर्मने कोई हणी
शके नहीं–एम देहथी भिन्न पोताना स्वभावनी भावना वडे धर्मात्माओने क्षमाधर्म
होय छे.
पुरुषार्थसिद्धि–उपायमां कहे छे के जेटला धर्मो मुनिना छे ते बधा धर्मोनो अंश श्रावकने
पण होय छे. पण एम नथी के मुनिने ज धर्म होय ने श्रावकने धर्म न होय. श्रावकोए
पण चैतन्यस्वभावना भानपूर्वक उत्तमक्षमादि धर्मोनी आराधना करवी. आ धर्मनी
आराधना पर्युषणना दिवसोमां ज थाय एम कांई नथी, ते तो गमे त्यारे जीव ज्यारे
करे त्यारे थाय छे. कोईपण क्षणे जीव धर्मनी आराधना करीय शके छे. आत्माना
आनंदपूर्वक गजसुकुमार आदि मुनिवरोए उत्तमक्षमाने आराधी. देह अग्निथी भस्म
थतो हतो, पण ते ज वखते आत्मा तो शांतरसना शेरडामां मग्न हतो, क्षमामां दुःख
नथी, क्षमामां तो अतीन्द्रिय आनंदना घूंटडा छे.