Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
अहो! आ उत्तमक्षमादि मारा आत्माना परम हितकार छे, ते सुख देनार छे.
मारा स्वभावना आ दश धर्मो ते मारा आत्माने आनंद देनार छे. –आम अत्यंत
धर्मानुरागथी दश धर्मोने जाणवा अने आराधवा.
प्रथम उत्तमक्षमाधर्मनी वात करे छे–
(कार्तिकस्वामीरचित द्वादशअनुप्रेक्षा गाथा ३९४)
मनुष्यो–देवो–पशुओ के अचेतनकृत गमे तेवा घोर भयानक उपसर्ग थाय
तोपण जेमनुं चित्त जरापण क्रोधथी तप्त थतुं नथी तेमने निर्मळ क्षमा होय छे.
सुकुमारमुनि, सुकौशलमुनि, पांडवमुनिवरो, पारसनाथ मुनिराज वगेरेए पशु–मनुष्य
के देवकृत उपसर्ग सहन करीने क्षमाधर्मनी आराधना करी छे.
श्रीमद् राजचंद्रजीए आ द्वादशअनुप्रेक्षा वांची हती, तेथी ‘अपूर्व अवसर’ मां
पण कह्युं के ‘बहु उपसर्गकर्ता प्रत्ये पण क्रोध नहीं.’
हुं तो ज्ञानस्वभाव छुं, मारा स्वभावमां शांत अकषाय चैतन्यरस भर्यो छे;
तेना वेदनसहित उत्तमक्षमा ते आनंदकारी छे. ‘हुं तो आनंद छुं मारा आनंदमां
प्रतिकूळता करनार जगतमां कोई छे नहीं’–आम आनंदमां रहेतां खेदनी उत्पत्ति ज
थती नथी. क्रोध वडे कोई जीव कदाच शरीरने घाते, पण मारा क्षमाधर्मने कोई हणी
शके नहीं–एम देहथी भिन्न पोताना स्वभावनी भावना वडे धर्मात्माओने क्षमाधर्म
होय छे.
आ क्षमा मुख्यपणे मुनिने होय छे, ने श्रावकने पण तेनो एकदेश होय छे.
श्रावक पण धर्मात्मा छे, धर्मनो पंथ पकडीने ते आनंदधामना रस्ते चाले छे.
पुरुषार्थसिद्धि–उपायमां कहे छे के जेटला धर्मो मुनिना छे ते बधा धर्मोनो अंश श्रावकने
पण होय छे. पण एम नथी के मुनिने ज धर्म होय ने श्रावकने धर्म न होय. श्रावकोए
पण चैतन्यस्वभावना भानपूर्वक उत्तमक्षमादि धर्मोनी आराधना करवी. आ धर्मनी
आराधना पर्युषणना दिवसोमां ज थाय एम कांई नथी, ते तो गमे त्यारे जीव ज्यारे
करे त्यारे थाय छे. कोईपण क्षणे जीव धर्मनी आराधना करीय शके छे. आत्माना
आनंदपूर्वक गजसुकुमार आदि मुनिवरोए उत्तमक्षमाने आराधी. देह अग्निथी भस्म
थतो हतो, पण ते ज वखते आत्मा तो शांतरसना शेरडामां मग्न हतो, क्षमामां दुःख
नथी, क्षमामां तो अतीन्द्रिय आनंदना घूंटडा छे.