Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : ३ :
क्षमानो–उपदेश आपतां कहे छे के हे जीव! बहारमां प्रतिकूळतानो प्रसंग आवे
ने ते तरफ लक्ष जाय तो तेने क्रोधनुं निमित्त न बनावतां एम विचारीने क्षमा राखवी
के–निंदा वगेरे करनार जे दोष कहे छे तेवा दोष जो मारामां विद्यमान होय तो ते शुं
खोटुं कहे छे?–मारा दोष मारे टाळवा जोईए; ते दोष बतावीने ते उपकार ज करे छे.
अने मारामां न होय एवा दोष जो कहेतो होय तो ए तो एनुं अज्ञान थयुं; तेमां मने
शुं नुकशान थयुं?–मारे क्रोध करीने शा माटे दुःखी थवुं? कोई निंदे–मारे के प्राण हरे
तोपण ते कांई मारा सम्यक्त्वादि धर्मनो तो नाश नथी करतो. आवी भावना वडे
धर्मी–मुनिवरो प्राण जाय तोपण क्षमाधर्मथी च्युत थता नथी ने क्रोध करता नथी, तेमने
क्षमानी आराधना छे.
समयसारमां श्री कुंदकुंदाचार्यदेव वस्तुस्वरूप बतावतां कहे छे के भाई,
निन्दा–प्रशंसाना शब्दो, के स्पर्श–रस वगेरे पदार्थो कांई तने राग–द्वेष करावता
नथी; ते पदार्थो तने कहेता नथी के तुं अमारी सामे जोईने राग के द्वेष कर; तेमज
तारो आत्मा पण ते पदार्थोमां जतो नथी.–आ रीते अत्यंत भिन्नता होवाथी,
आत्मा परद्रव्यो प्रत्ये अत्यंत उदासीन छे; तेने जाणतां राग–द्वेष करे एवो
आत्मानो स्वभाव नथी. जेम दिवाना प्रकाशमां कोई शुभ हो कोई अशुभ हो,–पण
दीवो तो तेना प्रत्ये राग के द्वेष करतो नथी, ते तो पोताना प्रकाशक–स्वभावथी
प्रकाश्या ज करे छे. तेम ज्ञाननो स्वभाव–स्व–पर प्रकाशक छे; तेना ज्ञानप्रकाशमां
निंदाना शब्दो परिणमे के प्रशंसाना शब्दो परिणमे, पण ज्ञानप्रकाशनो स्वभाव
तेमां द्वेष के राग करवानो नथी, ते तो पोताना प्रकाशकस्वभावमां ज वर्ते छे.–
आवा ज्ञान स्वभावने जाणतां जीव उपशमभावने पामे छे. आवा उपशमभावनो
अनुभव थतां क्रोधादिनो अभाव थई गयो, ते ज उत्तम एटले के वीतरागी क्षमा
धर्म छे. ज्ञाननुं ज्ञानस्वरूपमां स्थिर रहेवुं ने तेमां क्रोधादि विक्रिया न थवी ते ज
क्षमाधर्मनी उपासना छे; ने आवी क्षमा ते आनंदनी दातार छे.
आनंदकारी क्षमाधर्मनो जय हो.