Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 44

background image
: ४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
आत्माना आनंदने केवी रीते साधवो?
आत्माने ध्याववो होय तो परनी चिंतानो बोजो उतारी नांख,
अने आत्मानी वीरता प्रगट कर...धर्म साधवानी आ मोसम छे.
* [अष्टपाहुड–मोक्षप्राभृतना प्रवचनोमांथी] *
आत्माना स्वभावमां दोष नथी, आत्मानो असल स्वभाव अनंत ज्ञान–
आनंद गुणसंपन्न छे; पण पर्यायमां दोष छे, ते दोषनो अभाव थईने शुद्धदशा
प्रगटे तेनुं नाम सुख अने तेनुं नाम मोक्ष. आवी मोक्षदशा केम प्रगटे? के जीव–
अजीवनी विभक्तीने एटले के भिन्नताने जाणीने, शुद्धआत्माना ध्यान वडे पुण्य–
पापनो परिहार करतां उत्तम वीतरागीसुख प्रगटे छे; आत्मानो आनंद जेने
जोईतो होय तेणे क्रोधादि दोषथी रहित निर्मळ स्वभावने ध्याववो.
जेना मतमां जीव–अजीवनी भिन्नतानुं भान नथी, तेनां द्रव्य–गुण–
पर्यायने जे ओळखतो नथी, तेने आत्मानुं ध्यान होतुं नथी. वस्तुनी जेने खबर ज
नथी तेने ध्यान केवुं? तेथी कहे छे के जिनमतअनुसार जीव–अजीवना यथार्थ
स्वरूपने श्रद्धा–ज्ञानमां ल्ये, अने पछी शुद्ध जीवस्वभावमां एकाग्र थईने पुण्य–
पापनो परिहार करे, ए रीते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे सुशोभित आत्मा
उत्तमसुखरूप मोक्षने साधे छे.
आत्मानुं ध्यान कोण करी शके? प्रथम तो यथार्थ वस्तुस्वरूप नक्की करीने
जेणे मिथ्यात्वशल्य काढी नांख्युं छे, ते परथी विमुख अने स्वनी सन्मुख थईने
आत्माने ध्यावे छे. जेने परनी चिंतानो पार नथी तेने स्वनुं ध्यान क्यांथी थाय?
जेनो उपयोग ज परनी चिंतामां रोकायेलो छे तेनो उपयोग आत्मा तरफ क्यांथी
वळशे? माटे कहे छे के निश्चिंत अने निभृत पुरुषो वडे ज आत्मा सधाय छे. परनी
चिंतानो बोजो जेणे ज्ञानमांथी काढी नांख्यो छे, मारा ज्ञानमां परनुं काम नथी,
परनो बोजो नथी, अने क्रोधादि परभावो पण मारा चैतन्य–पिंडमां नथी,–आम
ज्ञानमांथी