Atmadharma magazine - Ank 323
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९६ आत्मधर्म : प :
परद्रव्योनी चिंताने अने परभावोना बोजाने खंखेरी नांखीने, शुद्धज्ञान वडे
धर्मीजीव आत्माने ध्यावे छे, ने ध्यानमां ते अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे.
जेने क्रोध–मान–माया–लोभनी तीव्रता होय, तेमां ज जेनो उपयोग रोकाई
गयो होय ते जीव स्वभावनो रस लगाडया विना तेमां उपयोगने कई रीते
जोडशे? अरे, चिदानंदस्वभाव सर्व दोष वगरनो निर्दोष भगवान, तेमां जेनो
उपयोग वळे तेने क्रोधादि कषायोनो रस केम रहे? आवा स्वभावनो जेने प्रेम छे
तेने गृहस्थपणामांय क््यारेक क््यारेक स्वरूपमां उपयोग थंभी जाय छे ने निर्विकल्प
अनुभवमां परम आनंद अनुभवाय छे.
अज्ञानी जीवो पोताना उपयोगने क्रोधादि परभावोमां एकाग्र करे छे; ने
ज्ञानी क्रोधथी भिन्न एवा चेतनस्वभावमां उपयोगने एकाग्र करे छे. शुभरागमां
उपयोगनी एकतानी जेने बुद्धि छे तेने पण क्रोधमां ज एकाग्रता छे, उपयोगमां
एकाग्रता नथी. ज्ञानीने क्रोध वखतेय क्रोधमां एकतानी बुद्धि नथी, तेनाथी भिन्न
एवा उपयोगने ज ते स्वपणे अनुभवे छे. अरे, आवुं भेदज्ञान पण जे न करे ने
परभावना अग्निमां शांति माने, ते तेनाथी छूटीने आत्माने क्यारे ध्यावे? अने
क्यारे ते साची शांतिने पामे? रूद्रपरिणाममां रोकायेलो जीव सिद्धिसुखने क््यांथी
देखे? रागनी भावनावाळो विषयोमां मग्न जीव चैतन्यगूफामां परमात्मभावना
कई रीते करे? समकिती दुनियामां गमे त्यां हो पण ते पोताना चिदानंद
स्वभावमां ज छे, बहारमां ते गया ज नथी, ने रागादि परभावमांय ते खरेखर
गया नथी केमके तेमां ते एकमेक नथी. गमे तेवी प्रतिकूळताना पहाड वच्चेय आवा
आत्मानी श्रद्धा अने प्रेम न छूटे त्यारे समजीए के आत्मानो रस छे. भाई,
बहारनी प्रतिकूळता तारामां छे ज क्यां? के तने नडतर करे! अने बहारनां
अनुकूळ कार्यो पण क्यां तारा छे के तुं तेनो बोजो अने चिंता राख? जे वस्तु
पोतानी छे ज नहि, जे वस्तुमां पोतानुं अस्तित्व ज नथी, अने जे वस्तुनुं कार्य
आत्मानुं नथी, तेनी चिंतामां के तेना भयमां ज्ञानी केम रोकाय? चिंताने तो
चेतनाथी जुदी करी नांखी छे. –आवी ज्ञानचेतना धर्मीना अंतरमां होय छे; ने
आवी चेतना वडे ज आत्मानो आनंद सधाय छे.